________________ 24] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र दलिकों में से वेदनयोग्य-भोगनेयोग्य कर्मदलिकों की एक प्रकार की रचना होती है उसे कर्म-निषेक कहते हैं। प्रथम समय में बहुत अधिक कर्मनिषेक होता है, द्वितीय-तृतीय समय में उत्तरोत्तर विशेष हीन होता जाता है / निषेक तब तक होता रहता है, जब तक वह बन्धा हुअा कर्म प्रारमा के साथ (कर्मबन्धस्थिति तक) टिकता है।' कर्म की स्थिति : दो प्रकार को एक तो, कर्म के रूप में रहना, और दूसरे, अनुभव, (वेदन) योग्य कर्म रूप में रहना / कम जब से अनुभव (वेदन) में आता है, उस समय की स्थिति को अनुभव योग्य कर्मस्थिति जानना। अर्थात्-कम की कुल स्थिति में से अनुदय का काल (अबाधाकाल) बाद करने पर जो स्थिति शेष रहती है, उसे अनभव योग्य कर्मस्थिति समझना / कर्म की स्थिति जितने कोड़ाकोड़ी सागरोपम की होती है, उतने सौ वर्ष तक वह कर्म, अनुभव (वेदन) में आए बिना आत्मा के साथ अकिचित्कर रहता है / जैसे--मोहनीय कर्म की 70 कोड़ाकोड़ी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति हैं, उसमें से 70 सौ (7000) वर्ष तक तो वह कर्म यों ही अकिंचित्कर पड़ा रहता है। वही कर्म का अबाधाकाल है / उसके पश्चात् वह मोहनीय कर्म उदय में आता है, तो 7 हजार वर्ष कम 70 कोड़ी कोड़ी सागरोपम तक अपना फल भुगताता रहता है, उस काल को कर्मनिषेककाल कहते हैं / निष्कर्ष यह है-कर्म को सम्पूर्ण स्थिति में से अबाधाकाल को निकाल देने पर बाकी जितना काल बचता है, वह उसका निषेक (बाधा-) काल है। आयुण्यकर्म के निषेककाल और अबाधाकाल में विशेषता—सिर्फ अायुष्यकर्म का निषेक काल 33 सागरोपम का और अबाधाकाल पूर्व कोटि का त्रिभागकाल है। वेदनीय कर्म को स्थिति—जिस वेदनीय कर्म के बन्ध में कषाय कारण नहीं होता, केवल योग निमित्त होते हैं, वह वेदनीय कर्म बन्ध की अपेक्षा दो समय की स्थिति वाला है। वह प्रथम समय में बन्धता है, दूसरे समय में वेदा जाता है; किन्तु सकषाय बन्ध की स्थिति की अपेक्षा वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति 12 महूर्त को होती है।' पांचवें से उन्नीसवें तक पन्द्रह द्वारों में उक्त विभिन्न विशिष्ट जीवों की अपेक्षा से कर्मबन्ध-प्रबन्ध का निरूपण-- 12. [1] नाणावरणिज्ज गं भंते ! कम्मं कि इत्थी बंधति, पुरिसो बंधति, नपुंसमो बंधति, गोइत्थी-नोपुरिसो-नोनपुसो बंधइ? गोयमा ! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ, न सो वि बंधइ, नोइत्थी-नोपुरिसो-नोनपुसयो सिय बंधइ, सिय नो बंधइ / [१२-१प्र.] 'भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बांधती है ? पुरुष बांधता है, अथवा नपुंसक बांधता है ? अथवा नो-स्त्री-नोपुरुष-नोनपुसक (जो स्त्री, पुरुष या नपुंसक न हो, वह) बांधता है ? 1. (क) भगवतीसूत्र (टीकानुवाद-टिप्पणयुक्त) खण्ड 2 पृ-२७६-२७७ (ख) शिवशर्म प्राचार्य कृत कर्मप्रकृति (उपा. यशोविजयकृत टीका) निषेकप्ररूपणा पृ.८० 2. (क) पंचसंग्रह गा-३१-३२, भा. प्रा. पृ 176. (ख) भगवतीसूत्र (टीकाऽनुवाद टिप्पणयुक्त) खण्ड 2 पृ-२७७-२७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org