________________ छठा शतक : उद्देशक-३ [ 23 [2] एवं दरिसणावरणिज्ज पि / [11-2] इसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म के विषय में भी जानना चाहिए। [3] वेदणिज्जं जह० दो समया, उक्को० जहा नाणावरणिज्ज / [11-3] वेदनीय कर्म को जघन्य (बन्ध.) स्थिति दो समय की है, उत्कृष्ट स्थिति ज्ञानावरणीय कर्म के समान तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की जाननी चाहिए। [4] मोहणिज्जं जह० अंतोमहत्तं, उक्को सत्तरि सागरोवमकोडाकोडोयो, सत्त य वाससहस्साणि प्रबाधा, अबाहूणिया कम्मठिई कम्मनिसेगो। [11-4] मोहनीय कर्म की बन्धस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट 70 कोडाकोड़ी सागरोपम की है / सात हजार वर्ष का अबाधाकाल है। अबाधाकाल की स्थिति को कम करने से शेष कर्म-स्थिति--कर्मनिषेककाल जानना चाहिए। [5] आउगं जहन्नेणं अंतोमुहत्त, उक्को० लेत्तीसं सागरोवमाणि पुन्वकोडिति भागमभहियाणि, कम्मट्टिती कम्ममिसे यो। [11-5] आयुष्यकर्म की बन्धस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि के त्रिभाग से अधिक तेतीस सागरोपम की है / इसका कर्मनिषेक काल (तेतीस सागरोपम का तथा शेष) अबाधाकाल जानना चाहिए / [6] नाम-गोयाणं जह० अट्ठ मुहत्ता, उक्को० वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, दोण्णि य वाससहस्साणि प्रवाहा, अबाहूणिया कम्महिती कम्मनिसेओ / [11-6] नामकर्म और गोत्र कर्म की बन्धस्थिति जघन्य पाठ मुहूर्त की, और उत्कृष्ट 20 कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। इसका दो हजार वर्ष का अबाधाकाल है। उस अबाधाकाल की स्थिति को कम करने से शेष कर्मस्थिति-कर्मनिषेककाल होता है / [7] अंतरायं जहा नाणावरणिज्ज / [11-7] अन्तराय-कर्म के विषय में ज्ञानावरणीय कर्म की तरह (बन्धस्थिति आदि) समझ लेना चाहिए। विवेचन-पाठ कर्मों को बन्धस्थिति प्रादि का निरूपण-प्रस्तुत सूत्रद्वय में आठ कर्मों की जघन्य-उत्कृष्ट बन्धस्थिति, अबाधाकाल एवं कर्मनिषेककाल का निरूपण किया गया है। बन्धस्थिति-कर्मवन्ध होने के बाद वह जितने काल तक रहता है, उसे बन्धस्थिति कहते हैं। अबाधाकाल-बाधा का अर्थ है-कर्म का उदय / कर्म का उदय न होना, 'अबाधा' कहलाता है / कर्मबन्ध से लेकर जबतक उस कर्म का उदय नहीं होता, तब तक के काल को अबाधाकाल कहते हैं / अर्थात्कम का बन्ध और कर्म का उदय इन दोनों के बीच के काल को अबाधाकाल कहते हैं। कर्मस्थितिकर्मभिषेक-काल-प्रत्येक कर्म बन्धने के पश्चात् उस कर्म के उदय में आने पर अर्थात् उस कर्म का अबाधाकाल पूरा होने पर कर्म को वेदन (अनुभव) करने के प्रथम समय से लेकर बन्धे हुए कर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org