________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! हेटिल्ला तिणि भयणाए, अजोगी न बंधइ / [24-1 प्र.] भगवन् ! ज्ञातावरणीय कर्म को क्या मनोयोगी, बांधता है, वचनयोगी बांधता है, काययोगी बांधता है, या अयोगी बांधता है ? [24-1 उ.] गौतम! (ज्ञानावरणीय कर्म को) निचले तीन-(मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी) भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं; अयोगी नहीं बांधता / [2] एवं वेदणिज्जवज्जायो। __ [24-2] इसी प्रकार वेदनीय को छोड़कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। [3] वेदणिज्ज हेछिल्ला बंधंति, अजोगी न बंधा [24-3] वेदनीय कर्म को मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी बांधते हैं; अयोगी नहीं बांधता। 25. गाणावरणिज्जं कि सागारोवउत्ते बंधइ, अणागारोवउत्ते बंधइ? गोयमा ! अट्ठसु वि भयणाए / [25 प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीय (आदि अष्टविध) कर्म को क्या साकारोपयोग वाला बांधता है या अनाकारोपयोग वाला बांधता है ? [25 उ.] गौतम ! (साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त दोनों प्रकार के जीव) आठों कर्मप्रकृतियों को कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं बांधते / 26. [1] पाणावरणिज्जं कि प्राहारए बंधइ, अणाहारए बंधइ ? गोयमा ! दो वि मयणाए। [26-1 प्र.] भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीय कर्म आहारक जीव बांधता है या अनाहारक जीव बांधता है ? [26-1 उ.] गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म को आहारक और अनाहारक, दोनों प्रकार के जीव, कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं बांधते / [2] एवं वेदणिज्ज-प्राउगवज्जाणं छण्हं / / [26-2] इसी प्रकार वेदनीय और आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष छहों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझ लेना चाहिए। [3] वेदणिज्ज प्राहारए बंधति, प्रणाहारए भयणाए। पाउगं प्राहारए भयणाए, अणाहारए न बंधति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org