________________ बीओ उद्देसओ : 'आहार' द्वितीय उद्देशक : 'पाहार' जीवों के आहार के सम्बन्ध में अतिदेशपूर्वक निरूपण 1. रायगिहं नगरं जाव एवं वदासी-ग्राहारुद्देसो जो पण्णवणाए सो सम्बो निरवसेसो नेयव्यो / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। ॥छ8 सए : बोप्रो उद्देसो समत्तो। [1] राजगृह नगर में""यावत् भगवान महावीर ने इस प्रकार फरमाया-यहाँ प्रज्ञापना सूत्र (के 28 वें आहारपद) में जो (प्रथम) पाहार-उद्देशक कहा है, वह सम्पूर्ण (निरवशेष) जान लेना चाहिए। है भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; (यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरण करने लगे।) विवेचन-जीवों के प्राहार के सम्बध में अतिदेशपूर्वक निरूपण-प्रस्तुत उद्देशक के इसी . सूत्र के द्वारा प्रज्ञापनासूत्रणित आहारपद के प्रथम उद्देशक का अतिदेश करके जीवों के आहारसम्बन्धी वर्णन करने का निरूपण किया है। प्रज्ञापना में वर्णित श्राहारसम्बन्धी वर्णन की संक्षिप्त झांकी-प्रज्ञापनासूत्र के 28 वें आहार पद के प्रथम उद्देशक में क्रमश: उक्त 11 अधिकारों में वर्णित विषय ये हैं--- 1. पृथ्वीकाय आदि जीव जो आहार करते हैं, वह सचित्त है, अचित्त है या मिश्र है ? 2. नैरयिक आदि जीव आहारार्थी हैं या नहीं ? इस पर विचार / 3. किन जीवों को कितने-कितने काल से, कितनी-कितनी बार अाहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है ? 4. कौन-से जीव किस प्रकार के पुद्गलों का आहार करते हैं ? 5. आहार करने वाला अपने समन शरीर द्वारा प्रहार करता है, या अन्य प्रकार से ? इत्यादि प्रश्न / 6. आहार के लिये लिये हुए पुद्गलों के कितने भाग का पाहार किया जाता है ? इत्यादि चर्चा | 7. मुंह में खाने के लिए रखे हुए सभी पुद्गल खाये जाते हैं या कितने ही गिर जाते हैं। इसका स्पष्टीकरण / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org