________________ 12] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वाले होते हैं / और अनुत्तरोपपातिक देव अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले होते हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरण करते हैं। विवेचन-जीवों में वेदना और निर्जरा से सम्बन्धित चतुभंगी का निरूपण-प्रस्तुत सूत्र में जीवों में वेदना और निर्जरा की चतुभंगी की सहेतुक प्ररूपणा की गई है। चतुभंगी--(१) महावेदना और महानिर्जरा वाले, (2) महावेदना-अल्पनिर्जरा वाले, (3) अल्पवेदना-महानिर्जरा वाले और (4) अल्पवेदना-अल्पनिर्जरा वाले जीव / ' प्रथम उद्देशक को संग्रहणी गाथा१४. महावेदणे य बस्थे कद्दम-खंजणमए य प्रधिकरणी / तणहत्थेऽयकवल्ले करण महावेदणा जीवा // 1 // सेवं भंते ! सेवं भते! तिः / // छट्ठसयस्स पढमो उद्देसो समत्तो॥ [१४-गाथा का अर्थ-] महावेदना, कर्दम और खंजन के रंग से रंगे हुए वस्त्र, अधिकरणी (एरण), घास का पूला (तृणहस्तक), लोहे का तवा या कड़ाह, करण और महावेदना वाले जीव इतने विषयों का निरूपण इस प्रथम उद्देशक में किया गया है। हे भगवन् यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है; इस प्रकार कह कर यावत् श्रीगौतमस्वामी विचरण करने लगे। // छठा शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त / 1. वियाहपण्णत्तिसुत्त (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), भा-१, पृ. 233 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org