________________ 14] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 8. खायी हुई वस्तुएँ किस-किस रूप में परिणत होती हैं ? इसकी चर्चा / / 6. एकेन्द्रियादि जीवों के शरीरों को खाने वाले जीवों से सम्बन्धित वर्णन / 10. रोमाहार से सम्बन्धित विवेचन / 11. मन द्वारा तृप्त हो जाने वाले मनोभक्षी देवों से सम्बन्धित तथ्यों का निरूपण / ' प्रज्ञापना सूत्र के 28 वें पद के प्रथम उद्देशक में इन ग्यारह अधिकारों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है, विस्तार भय से यहाँ सिर्फ सूचना मात्र दी है, जिज्ञासु उक्त स्थल देखें। ॥छठा शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त / / ज्ञापना स्त्र के 28 वें प्राहारपद के प्रथम उहे शक में वर्णित 11 अधिकारों की संग्रहणी गाथाएँ सचित्ताऽऽहारट्ठी केवति-कि बाऽवि सव्वतो चेव / कतिभाग-सब्बे खलू-परिणामे व बोद्धब्वे // 1 // एगिदियसरीरादी-लोमाहारो तहेव मणभक्खी। एतेसिं तु पदाणं विभावणा होति कातव्वा // 2 // (ख) भगवती सूत्र टीकानुवाद-टिप्पणयुक्त, खण्ड 2, पृ. 260 से 268 तक / (ग) विशेष जिज्ञासुओं को इस विषय का विस्तृत वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के 28 वें पद के प्रथम उद्देशक में देखना चाहिए। सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org