________________ अनुज्ञा का अनुरोध 523, प्रव्रज्या का संकल्प सुनते ही माता शोकमग्न 525, माता-पिता के साथ विरक्त जमालि का संलाप 526, जमालि को प्रव्रज्याग्रहण की अनुमति दी 536, जमालि के प्रवज्याग्रहण का विस्तृत वर्णन 537-553, भगवान की बिना प्राज्ञा के जमालि का पृथक् विहार 554, जमालि अनगार का श्रावस्ती में और भगवान का चंपा में विहरण 555, जमालि अनगार के शरीर में रोगातंक की उत्पत्ति 556, रुग्ण जमालि को शय्यासंस्तारक के निमित्त से सिद्धान्त-विरुद्ध-स्फुरणा और प्ररूपणा 557, कुछ श्रमणों द्वारा जमालि के सिद्धान्त का स्वीकार, कुछ के द्वारा अस्वीकार 558, जमालि द्वारा सर्वज्ञता का मिथ्या दावा 556, गौतम के दो प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ जमालि का भगवान् द्वारा सद्धान्तिक समाधान 560, मिथ्यात्वग्रस्त जमालि की विराधकता का फल 562, किल्विषिक देवों में उत्पत्ति का भगवत्समाधान 563, किल्विषिक देवों के भेद, स्थान एवं उत्पत्तिकारण 564, किल्विषिक देवों में जमालि की उत्पत्ति का कारण 566, स्वादजयी अनगार किल्विषिक देव क्यों ? 567, जमालि का भविष्य 567 / चौतीसवाँ उद्देशक-पुरुष (सूत्र 1-25) 566-575 पुरुष और नोपुरुष का घातक, उपोद्घात, पुरुष के द्वारा अश्वादिघात सम्बन्धी प्रश्नोत्तर 566, प्राणिघात के सम्बन्ध में सापेक्ष सिद्धान्त 571, घातक व्यक्ति को वैरस्पर्श की प्ररूपणा 571, एकेन्द्रिय जीवों की परस्पर श्वासोच्छ्वाससम्बन्धी प्ररूपणा 572, पृथ्वीकायि कादि द्वारा पृथ्वीकायिकादि को श्वासोच्छ्वास करते समय क्रिया-प्ररूपणा 573, वायुकाय को वृक्षमूलादि कंपाने-गिराने संबधी क्रिया 575 / / 576 दशम शतक 576-626 प्राथमिक दशम शतकगत चौतीस उद्देशकों के विषयों का संक्षिप्त परिचय दशम शतक के चौतीस उद्देशकों को संग्रहगाथा 578 प्रथम उद्देशक-दिशाओं का स्वरूप (सूत्र 2-16) 576-585 दिशात्रों का स्वरूप 576, दिशाएँ : जीव-अजीव रूप क्यों ? 576, दिशात्रों के दस भेद 580, दिशाओं के ये दस नामान्तर क्यों ? 581, दश दिशाओं की जीव-अजीव सम्बन्धी वक्तव्यता 581, दिशा-विदिशाओं का आकार एवं व्यापकत्व 582, आग्नेयी विदिशा का स्वरूप 583, जीवदेश सम्बन्धी भंगजाल 583, शेष दिशा-विदिशाओं की जीव-अजीव प्ररूपणा 584, शरीर के भेद-प्रभेद तथा सम्बन्धित निरूपण 584 / द्वितीय उद्देशक-संवृत अनगार (सूत्र 1-6) 586-563 वीचिपथ और अवीचिपथ स्थित संवृत अनगार को लगने वाली क्रिया 586, ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी क्रिया के अधिकारी 587, वीयीपंथे : चार रूप : चार अर्थ 587, अवीयीपंथे : चार रूप : चार अर्थ 587, योनियों के भेद-प्रभेद, प्रकार एवं स्वरूप 587, योनि का [26] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org