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________________ नैरयिकों के प्रवेशनकभंग 477, एक संयोगी 7 भंग 476, द्विकसंयोगी 105 भंग 479, त्रिकसंयोगो 350 भंग 479, चतुःसंयोगी 350 भंग 479, पंचसंयोगी 105 भंग 479, पसंयोगी 7 भंग 480, सात नैरयिकों के प्रवेशनकभंग 480, सात नरयिकों के असंयोगी 7 भंग 481, द्विकसंयोगी 126 भंग 481, त्रिकसंयोगी 525 भंग 481, चतु:संयोगी 700 भंग 481, पंचसंयोगी 315 भंग 481, षट्संयोगी 42 भंग 481, सप्तसंयोगी एक भंग 481, पाठ नैरयिकों के प्रवेशनकभंग 481, असयोगी भंग 482, द्विकसंयोगी 147 भंग 482, त्रिकसंयोगी 735 भंग 482, चतुःसंयोगी 1225 भंग 482, पंचसंयोगी 735 भंग 483, षट्संयोगी 147 भंग 483, सप्तसंयोगी 7 भंग 483, नौ नै रयिकों के प्रवेशनकभंग 483, नौ नैरयिकों के असंयोगी भंग 483, द्विकसंयोगी 168 भंग 483, त्रिकसंयोगी 980 भंग 484, चतुष्कसंयोगी 1660 भंग 494, पंचसंयोगी 1470 भग 484, षट्संयोगी 362 भंग 484, सप्तसंयोगी 28 भंग 484, दस नैरयिकों के प्रवेशनकभंग 484, दस नैरयिकों के असंयोगी भंग 485, द्विकसंयोगी 186 भंग 485, त्रिकसंयोगी 1260 भग 485, चतुष्कसंयोगी 2640 भंग 485, पंचसंयोगी 2646 भंग 485, षट्संयोगी 882 भंग 485, सप्तसंयोगी 84 भंग 485, संख्यात नैरयिकों के प्रवेशनकभंग 486, संख्यात का स्वरूप 488, असंयोगी 7 भंग 488, द्विकसंयोगी 231. भंग 488, त्रिकसंयोगी 735 भंग 488, चतुः संयोगी 1085 भंग 486, पंचसंयोगी 861 भंग 486, षट्संयोगी 357 भंग 486, सप्तसंयोगी 61 भंग 486, असंख्यात नैरयिकों के प्रवेशनकभंग 486, उत्कृष्ट नैरपिक-प्रवेशनक प्ररूपणा 460, रत्नप्रभादि नैरयिक प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व 462, तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक : प्रकार और भंग 463, उत्कृष्ट तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक प्ररूपणा 494, एकेन्द्रियादि तिर्यञ्चप्रवेशनकों का अल्पबहुत्व 465, मनुष्य-प्रवेशनक : प्रकार और भंग 465, उत्कृष्ट रूप से मनुष्य-प्रवेशनक-प्ररूपणा 467, मनुष्य-प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व 467, देव-प्रवेशनक : प्रकार और भंग 498, उत्कृष्ट रूप से देव-प्रवेशनक-प्ररूपणा 466, भवनवासी आदि देवों के प्रवेशनकों का अल्पबहत्व 488, नारकतिर्यञ्च-मनुष्य-देव प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व 500, चौवीस दण्डकों में सान्तर-निरन्तर उपपादउद्वर्तनप्ररूपणा 500, प्रकारान्तर से चौवीस दण्डकों में उत्पाद-उद्वर्तना-प्ररूपणा 501, सत ही उत्पन्न होने आदि का रहस्य 503, सत् में ही उत्पन्न होने आदि का रहस्य 503, गांगेय सम्मतसिद्धान्त के द्वारा स्वकथन की पुष्टि 503, केवलज्ञानी आत्मप्रत्यक्ष से सब जानते हैं 503, केवलज्ञानी द्वारा समस्त स्व-प्रत्यक्ष 504, नैरयिक प्रादि की स्वयं उत्पत्ति : रहस्य और कारण 504-505, भगवान के सर्वज्ञत्व पर श्रद्धा और पंचमहाव्रत धर्म-स्वीकार 507 / / तेतीसवाँ उद्देशक-कुण्डग्राम (सूत्र 1-112) 508-568 __ ऋषभदत्त और देवानन्दा : संक्षिप्त परिचय 508, ऋषभदत्त ब्राह्मणधर्मानुयायी था या श्रमणधर्मानुयायी ? 506, भगवान् की सेवा में वन्दना-पर्युपासनादि के लिए जाने का निश्चय 506, ब्राह्मणदम्पती की दर्शनवन्दनार्थ जाने की तैयारी 510, पांच अभिगम क्या और क्यों ? 513, देवानन्दा की मातृवत्सलता और गौतम का समाधान 513, ऋषभदत्त द्वारा प्रव्रज्याग्रहण एवं निर्वाणप्राप्ति 515, देवानन्दा द्वारा साध्वी-दीक्षा और मूक्ति-प्राप्ति 516. (जमालि-चरित जमालि और उसका भोग-वैभवमय जीवन 518, भगवान् का पदार्पण सुनकर दर्शन-वन्दनादि के लिये गमन 516, जमालिद्वारा प्रवचन-श्रवण और श्रद्धा तथा प्रव्रज्याकी अभिव्यक्ति 522. माता-पिता से दीक्षा की [28] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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