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________________ निर्ग्रन्थ के लिए आचरणीय पंचविध व्यवहार, उनकी मर्यादा और व्यवहारानुसार प्रवृत्ति का फल 337, व्यवहार का विशेषार्थ 338, पागम आदि पंचविध व्यवहार का स्वरूप 338, पूर्व-पूर्व व्यवहार के अभाव में उत्तरोत्तर व्यवहार आचरणीय 336, अन्त में फलश्रुति के साथ स्पष्ट निर्देश 336, विविध पहलुओं से ऐपिथिक और साम्परायिक कर्मबन्ध से सम्बन्धित प्ररूपणा 336, बन्ध : स्वरूप एवं विवक्षित दो प्रकार 344, ऐपिथिक कर्मबन्ध : स्वामी, कर्ता, बन्धकाल, बन्धविकल्प तथा बन्धांश 345, त्रैकालिक ऐपिथिक कर्मबन्ध-विचार 345, ऐपिथिक कर्मबन्ध-विकल्प चतुष्टय 346, ऐपिथिक कर्म बन्धांश सम्बन्धी चार विकल्प 348, साम्परायिक कर्मबन्ध : स्वामी, कर्ता, वन्धकाल, बन्धविकल्प तथा बन्धांश 347, साम्परायिक कर्मबन्ध-सम्बन्धी त्रैकालिक विचार 347, साम्परायिक कर्मबन्धक के विषय में सादि-सान्त आदि 4 विकल्प 348, बावीस परीषहों का अष्टविध कर्मों में समवतार तथा सप्तविधबन्धकादि के परीषहों की प्ररूपणा 348, परीषह : स्वरूप और प्रकार 352, सप्तविध प्रादि बन्धक के साथ परीषहों का साहचर्य 352, उदय, अस्त और मध्याह्न के समय में सूर्यों की दूरी और निकटता के प्रतिभास आदि की प्ररूपणा 353, सूर्य के दूर और निकट दिखाई देने के कारण का स्पष्टीकरण 356, सूर्य की गति : अतीत, अनागत या वर्तमान क्षेत्र में ? 357, 7, सूर्य किस क्षेत्र को प्रकाशित, उद्योतित और तप्त करता है ? 357, सूर्य की ऊपर-नीचे और तिरछे प्रकाशित आदि करने की सीमा 357, मानुषोत्तरपर्वत के अंदर-बाहर के ज्योतिष्क देवों और इन्द्रों का उपपात-विरहकाल 357 / नवम उद्देशक-बन्ध (सूत्र 1-..126) 356-401 बन्ध के दो प्रकार : प्रयोगबन्ध और विस्रसाबन्ध 356, विस्रसाबन्ध के भेद-प्रभेद और स्वरूप 356, त्रिविध-अनादि विस्रसाबन्ध का स्वरूप 361, त्रिविध-सादि विनसाबन्ध का स्वरूप 361, अमोघ शब्द का अर्थ 362, बन्धन-प्रत्यायिक बन्ध का नियम 362, प्रयोगबन्ध : प्रकार, भेद-प्रभेद तथा उनका स्वरूप 362, प्रयोगबन्ध : स्वरूप और जीवों की दृष्टि से प्रकार 366, शरीरप्रयोगबन्ध के प्रकार एवं प्रौदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध के सम्बन्ध में विभिन्न पहलुओं से निरूपण 367, औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध के आठ कारण 374, प्रौदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध के दो रूपः सर्वबन्ध, देशबन्ध 374, उत्कृष्ट देशबन्ध 374, क्षुल्लक भवग्रहण का प्राशय 375, औदारिकशरीर के सर्वबन्ध और देशबन्ध का अन्तर-काल 375, प्रौदारिक शरीर के देशबन्ध का अन्तर 375. प्रकारान्तर से प्रौदारिकशरीरबन्ध का अन्तर 375, पुद्गलपरावर्तन आदि की व्याख्या 376, औदारिकशरीर के बन्धकों का अल्पबहुत्व 376, वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध के भेद-प्रभेद एवं विभिन्न पहलुओं से तत्सम्बन्धित विचारणा 376, वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध के नौ कारण 384, वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध के रहने की कालसीमा 384, बैंक्रियशरीरप्रयोगबन्ध का अन्तर 384, वैक्रियशरीर के देश-सर्वबन्धकों का अल्पवहुत्व 385, पाहारकशरीरप्रयोगबन्ध का विभिन्न पहलुओं से निरूपण 385, आहारक शरीरप्रयोगबन्ध के अधिकारी 387, प्राहारकशरीरप्रयोगबन्ध की कालावधि 387, आहारशरीरप्रयोगबन्ध का अन्तर 3.7, आहारकशरीरप्रयोगबन्ध के देश-सर्वबन्धकों का अल्पबहुत्व 387, तैजसशरीरप्रयोगबन्ध के सम्बन्ध में विभिन्न पहलुओं से निरूपण 388, तैजसशरीरप्रयोगबन्ध का स्वरूप 286, कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध का भेद-प्रभेदों की अपेक्षा विभिन्न दृष्टियों से निरूपण 386, कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध : स्वरूप, भेद-प्रभेदादि एवं कारण 365, ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्मबन्ध के [25] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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