________________ चतुर्थ उद्देशक-क्रिया (सूत्र 1-2) क्रियाएँ और उनसे सम्बन्धित भेद-प्रभेदों आदि का निर्देश 300, क्रिया की परिभाषा 300, कायिकी ग्रादि क्रियाओं का स्वरूप और प्रकार 300 / पंचम उद्देशक-आजीव (सूत्र 1-15) 302-311 सामायिकादि साधना में उपविष्ट श्रावक का सामान या स्त्री आदि परकीय हो जाने पर भी उसके द्वारा स्वममत्ववश अन्वेषण 302, सामायिकादि साधना में परकीय पदार्थ स्वकीय क्यों ? 304, श्रावक के प्राणातिपात आदि पापों के प्रतिक्रमण-संवर-प्रत्याख्यान-सम्बन्धी विस्तृत भंगों की श्रावक को प्रतिक्रमण, संवर और प्रत्याख्यान करने के लिये प्रत्येक के 46 भंग 308, आजीविकोपासकों के सिद्धान्त, नाम, प्राचार-विचार और श्रमणोपासकों की उनसे विशेषता 306, आजीविकोपासकों का प्राचार-विचार 310, श्रमणोपासकों की विशेषता 310, कर्मादान और उसके प्रकारों की व्याख्या 310, देवलोकों के चार प्रकार 311 / छठा उद्देशक-प्रासुक (सूत्र 1-26) 312-326 तथारूप श्रमण, माहन या असंयत आदि को प्रासक-अप्रासुक, एषणीय-अनेषणीय आहार देने का श्रमणोपासक को फल 312, 'तथारूप' का आशय 313, मोक्षार्थ दान ही यहाँ विचारणीय 313, 'प्रासुक-अप्रासुक', 'एषणीय-अनेषणीय' की व्याख्या 313, 'बहुत निर्जरा, अल्पतर पाप' का प्राशय 313, गृहस्थ द्वारा स्वयं या स्थविर के निमित्त कहकर दिये गए पिण्ड, पात्र आदि की उपभोगमर्यादा-प्ररूपणा 314, परिष्ठापन विधि 315, स्थण्डिल-प्रतिलेखन-विवेक 315, विशिष्ट शब्दों की व्याख्या 316, अकृत्यसेवी, किन्तु प्राराधनातत्पर निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी की आराधकता की विभिन्न पहलुओं से सयुक्तिक प्ररूपणा 316, दृष्टान्तों द्वारा आराधकता की पुष्टि 320, पाराधक-विराधक की व्याख्या 321, जलते हुए दीपक और घर में जलने वाली वस्तु का निरूपण 321, अगार का विशेषार्थ 321, एक जीव या बहुत जीवों की परकीय (एक या बहुत-से शरीरों की अपेक्षा होने वाली) क्रियाओं का निरूपण 322, अन्य जीव के औदारिकादि शरीर की अपेक्षा होने वाली क्रिया का प्राशय 325, किस शरीर की अपेक्षा कितने पालापक ? 326 / सप्तम उद्देशक –'प्रदत्त' (सूत्र 1-25) 327-334 __ अन्यतीथिकों के साथ अदत्तादान को लेकर स्थविरों के वाद-विवाद का वर्णन 327, अन्यतोथिकों की भ्रान्ति 330. स्थविरों पर अत्यतीथिकों द्वारा पुन: प्राक्षेप और स्थविरों द्वारा प्रतिवाद 331, अन्यतीथिकों की भ्रान्ति 333, गतिप्रवाद और उसके पांच भेदों का निरूपण 333, गतिप्रपात के पाँच भेदों का स्वरूप 334 / अष्टम उद्देशक-'प्रत्यमीक' (सूत्र 1-47) 335-358 गुरु-गति-समूह-अनुकम्पा-श्रुत-भाव-प्रत्यनीक-भेद-प्ररूपणा 315, प्रत्यनीक 336, गुरु-प्रत्यनीक का स्वरूप 336, गति-प्रत्यनीक का स्वरूप 336, समूह-प्रत्यनीक का स्वरूप 336, अनुकम्प्यप्रत्यनीक का स्वरूप 337 त-प्रत्यनीक का स्वरूप 337, भाव-प्रत्यनीक का स्वरूप 337, [24] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org