________________ द्वितीय उद्देशक--काशीविष (सूत्र 1-162) 245-264 __आशीविषः दो मुख्य प्रकार और उनके अधिकारी तथा विष-सामर्थ 245, आशीविष और उसके प्रकारों का स्वरूप 246, जाति-पाशीविषयुक्त प्राणियों का विषसामर्थ्य 250, छद्मस्थ द्वारा सर्वभावेन ज्ञान के अविषय और केवली द्वारा सर्वभावेन ज्ञान के विषयभूत दस स्थान 250, छदमस्थ का प्रसंगवश विशेष अर्थ 250, ज्ञान और प्रज्ञान के स्वरूप तथा भेद-प्रभेद का निरूपण 251, पांच ज्ञानों का स्वरूप 253, प्राभिनिबोधिकज्ञान के चार प्रकारों का स्वरूप 253, अर्थावग्रहव्यंजनावग्रह का स्वरूप 254, अवग्रह आदि की स्थिति और एकार्थक नाम 254, श्रुतादि ज्ञानों के भेद 254, मति-अज्ञान आदि का स्वरूप और भेद 254, ग्रामसंस्थित आदि का स्वरूप 254, पौधिक चौवीस दण्डकवर्ती तथा सिद्ध जीवों में ज्ञान-अज्ञान-प्ररूपणा 254, नैरयिकों में तीन ज्ञान नियमत:, तीन अज्ञान भजनात: 257, तीन विकलेन्द्रिय जीवों में दो ज्ञान 257, गति आदि पाठ द्वारों की अपेक्षा ज्ञानी-अज्ञानी-परूपणा 257, गति आदि द्वारों के माध्यम से जीवों में ज्ञान-प्रज्ञान की प्ररूपणा 264, नौवें लब्धिद्वार की अपेक्षा से ज्ञानी--अज्ञानी की प्ररूपणा 266, लब्धि की परिभाषा 275, लब्धि के मुख्य भेद 275, ज्ञानलब्धि के भेद 275, दर्शनलब्धि के तीन भेद : उनका स्वरूप 275, चारित्रलब्धि: स्वरूप और प्रकार 275, चारित्राचारित्रलब्धि का अर्थ 276, दानादि लब्धियाँ: एक एक प्रकार की 276, ज्ञानलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान और अज्ञान को प्ररूपणा 276, अज्ञानलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान और अज्ञान की प्ररूपणा 277, दर्शनलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान-अज्ञान-प्ररूपणा 277, चारित्रलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान-प्रज्ञान-प्ररूपणा 277, चारत्राचारित्रलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान-अज्ञान-प्ररूपणा 277, दानादि चार लब्धियों वाले जीवों में ज्ञः -अज्ञान-प्ररूपणा 278, वीर्यलब्धि वाले जीवों में ज्ञान-अज्ञान-प्ररूपणा 278, इन्द्रियलब्धि वाले जीवों में ज्ञान-अज्ञान प्ररूपणा 278, दसवें उपयोगद्वार से लेकर पन्द्रहवें आहारकद्वार तक के जीवों में ज्ञान और प्रज्ञान की प्ररूपणा 276, उपयोगद्वार 283, योगद्वार 283, लेश्याहार 283, कपायद्वार 284, वेदद्वार 284, पाहारकद्वार 284, सोलहवें विषयद्वार के माध्यम से द्रव्यादि की अपेक्षा ज्ञान और प्रज्ञान का निरूपण 284, ज्ञानों का विषय 286, तीन अज्ञानों का विषय 288, ज्ञानी और अज्ञानी के स्थितिकाल, अन्तर और अल्पबहुत्व का निरूपण 288, ज्ञानी का ज्ञानी के रूप में अवस्थितिकाल 286, त्रिविध अज्ञानियों का तद्र प अज्ञानी के रूप में अवस्थितिकाल 290, पांच ज्ञानों और तीन अज्ञानों का परस्पर अंतरकाल 260, पांच ज्ञानी और तीन अज्ञानी जीवों का अल्पबहुत्व 260, ज्ञानी और अज्ञानी जीवों का परस्पर सम्मिलित अल्पबहुत्व 261, बीसवें पर्यायद्वार के माध्यम से ज्ञान और अज्ञान के पर्यायों की प्ररूपणा 261, ज्ञान और अज्ञान के पर्यायों का अल्पबहुत्व 261, पर्याय : स्वरूप, प्रकार एवं परस्पर अल्पबहुत्व 263, पर्यायों के अल्पबहुत्व की समीक्षा 263 / / तृतीय उद्देशक वृक्ष (सूत्र 1-8) 265-266 संख्यातजीविक, असंख्यातजीविक और अनन्तजीविक वृक्षों का निरूपण 265, संख्यातजीविक, असंख्यातजीविक और अनन्तजीविक का विश्लेषण 296, छिन्न कछुए आदि के टुकड़ों के बीच का जीवप्रदेश स्पृष्ट और शस्त्रादि के प्रभाव से रहित 297, रत्नप्रभादि पृथ्वियों के चरमत्वअचरमत्व का निरूपण 268, चरम-अचरम-परिभाषा 266, चरमादि छह प्रश्नोत्तरों का प्राशय 266 / [23] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org