________________ दशम उद्देशक-अन्ययूथिक (सूत्र 1-22) 165-204 अन्यतीथिक कालोदायी की पंचास्तिकाय-चर्चा और सम्बुद्ध होकर प्रव्रज्या स्वीकार 165, कालोदायी के जीवन-परिवर्तन का घटनाचक्र 166, जीवों के पापकर्म और कल्याणकर्म क्रमश: पाप-कल्याण-फल-विपाक संयुक्त होने का सदृष्टान्त निरूपण 166, अग्निकाय को जलाने और बुझाने वालों में से महाकर्म प्रादि और अल्पकर्मादि से संयुक्त कौन और क्यों ? 201, अग्नि जलाने वाला महाकर्म आदि से युक्त क्यों ? 203, प्रकाश और ताप देने वाले अचित्त प्रकाशमान पुद्गलों की प्ररूपणा 203, सचित्तवत् अचित्त तेजस्काय के पुद्गल 204, कालोदायी द्वारा तपश्चरण, संल्लेखना और समाधिपूर्वक निर्वाणप्राप्ति 204 / अष्टम शतक 205-422 प्राथमिक 205 अष्टम शतकगत दस उद्देशकों का संक्षिप्त परिचय अष्टम शतक को संग्रहणी गाथा 207 प्रथम उद्देशक-पुद्गल (सूत्र 2-61) 207-244 पुद्गलपरिणामों के तीन प्रकारों का निरूपण 207, परिणामों की दृष्टि से तीनों पुद्गलों का स्वरूप 207, मित्रपरिणत पूदगलों के दो रूप 208, नौ दण्डकों द्वारा प्रयोग-परिणत पदगलों का निरूपण 208, विवक्षाविशेष से नौ दण्डक (विभाग) 223, द्वीन्द्रियादि जीवों की अनेकविधता 223, पंचेन्द्रिय जीवों के भेद-प्रभेद 223, कठिन शब्दों के विशेष अर्थ 223, मिश्र-परिणतपूदगलों का नी दण्डकों द्वारा निरूपण 224, विस्रसा-परिणत पुद्गलों के भेद-प्रभेद का निर्देश 224, मन-वचन-काया की अपेक्षा विभिन्न प्रकार से प्रयोग-मिश्र-विनसा से एक द्रव्य के परिणमन की प्ररूपणा 225, प्रयोग को परिभाषा 235, योगों के भेद-प्रभेद और उनका स्वरूप 235, प्रयोगपरिणतः तीनों योगों द्वारा 236, प्रारम्भ, संरम्भ और समारम्भ का स्वरूप 236, प्रारम्भ सत्यमनःप्रयोग आदि का अर्थ 236, दो द्रव्य सम्बन्धी प्रयोग-मिश्र-विरसा परिणत पदों के मनोयोग प्रादि के संयोग से निष्पन्न भंग 237, प्रयोगादि तीन पदों के छह भंग 239, विशिष्ट-मनःप्रयोगपरिणत के पांच सौ चार भंग 236, पूर्वोक्त विशेषण युक्त वचनप्रयोगपरिणत के भी 504 भंग, 236, औदारिक आदि कायप्रयोगपरिणत के 166 भंग 239, दो द्रव्यों के त्रियोगसम्बन्धी मिश्रपरिणत भंग 240, विस्रसापरिणत द्रव्यों के भंग 240, तीन द्रव्यों के मन-वचन-काया की अपेक्षा प्रयोग-मिश्र-विस्रसा परिणत पदों के भंग 240, तीन पदों के विद्रव्यसम्बन्धी भंग 241, सत्यमन:प्रयोगपरिणत आदि के भंग 241, मिश्र और विस्रसापरिणत के भंग 241, चार आदि द्रव्यों के मन-वचन-काया की अपेक्षा प्रयोगादिपरिणत पदों के संयोग से निष्पन्न भंग 241, चार द्रव्यों सम्बन्धी प्रयोग-परिणत आदि तीन पदों के भंग 243, पंच द्रव्य संबन्धी और पांच से आगे के भंग 243, परिणामों की दृष्टि से पुद्गलों का अल्पबहुत्व 243, सबसे कम और सबसे अधिक पुद्गल 244 / [ 22 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org