________________ प्रथम शतक : उद्देशक-१] [ 19 (1.3) नेरइया णं भंते ? प्राहारदी? जहा पण्णवणाए पढमए पाहार उद्देसए तथा भाणियव्यं / ठिति उस्सासाहारे किं वा ऽऽहारैति सम्वनो वा वि / कतिभागं सव्वाणि व कोस व भुज्जो परिणमंति? // 2 // [1. 3. प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक पाहारार्थी होते हैं ? [1. 3. उ.] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के ग्राहारपद (२८व) के प्रथम उद्देशक के अनुसार समझ लेना। गाथार्थ-नारक जीवों की स्थिति, उच्छवास तथा आहार-सम्बन्धी कथन करना चाहिए। क्या वे पाहार करते हैं ? वे समस्त प्रात्मप्रदेशों से ग्राहार करते हैं ? वे कितने भाग का आहार करते हैं या वे सर्व-आहारक द्रव्यों का आहार करते हैं ? और वे अाहारक द्रव्यों को किस रूप में वार-बार परिणमाते हैं। (1.4) नेरइयाणं भंते ! पुवाहारिता पोगला परिणता 1? पाहारिता प्राहारिज्जमाणा पोग्गला परिणता 2 ? प्रणाहारिता पाहारिजिजस्तमाणा पोग्गला परिणया 3 ? प्रणाहारिया अणाहारिजिस्समाणा पोग्गला परिणया 4 ? गोयमा! नेरइयाणं पुवाहारिता पोग्गला परिणता 1, प्राहारिता प्राहारिमाणा पोग्गला परिणता परिणमंति य 2, अणाहारिता ग्राहारिज्जिासमाणा पोग्गला नो परिणता, परिणमिस्संति 3, अणाहारिया प्रणाहारिज्जिस्समाएगा पोग्गला नो परिणता, नो परिणमिस्संति 4 / [1. 4. प्र.] भगवन् ! नैरयिकों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए ? पाहारित (ग्राहार किये हुए, तथा (वर्तमान में) अाहार किये जाते हुए पुद्गल परिणत हुए ? अथवा जो पुद्गल अनाहारित (नहीं आहार किये हुए) हैं, वे तथा जो पुद्गल (भविष्य में) आहार के रूप में ग्रहण किये जाएंगे, वे परिणत हुए ? अथवा जो पुद्गल अनाहारित हैं और आगे भी पाहारित (आहार के रूप में) नहीं होंगे, वे परिणत हुए? 1. 4. उ.] हे गौतम! नारकों द्वारा पहले पाहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए; 1. (इसी तरह) आहार किये हुए और ग्राहार किये जाते हुए पुद्गल परिणत हुए परिणत होते हैं, 2. किन्तु नहीं ग्राहार किये हुए (अनाहारित) पुद्गल परिणत नहीं हुए, तथा भविष्य में जो पुद्गल आहार के रूप में ग्रहण किये जाएंगे, वे परिणत होंगे, 3. अनाहारित पुद्गल परिणत नहीं हुए, तथा जिन पुदगलों का पाहार नहीं किया जाएगा, वे भी परिणत नहीं होंगे 4. / (1.5) नेरइयाणं भंते ! पुवाहारिया पोग्गला चिता० पुच्छा। जहा परिणया तहा चिया वि / एवं उचिता, उदीरिता, वेदिता, निज्जिण्णा / गाहापरिणत चिता उचिता उदोरिता वेदिया य निज्जिण्णा / एक्केक्कम्मि पदम्मी चउबिहा पोग्गला होति // 3 // [1.5 प्र.] हे भगवन् ! नैरयिकों द्वारा पहले आहारित (संगृहोत) पुद्गल चय को प्राप्त [1. 5. उ.] हे गौतम ! जिस प्रकार वे परिणत हुए, उसो प्रकार चय को प्राप्त हुए; उसो प्रकार उपचय को प्राप्त हुए; उदीरणा को प्राप्त हुए, वेदन को प्राप्त हुए तथा निर्जरा को प्राप्त हुए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org