________________ 20] [ भगवतीसूत्र गाथार्थ-परिणत, चित, उपचित, उदीरित, वेदित और निर्जीर्ण, इस एक-एक पद में चार प्रकार के पुद्गल (प्रश्नोत्तर के विषय) होते हैं। (1.6) नेरइया णं भंते ! कतिविहा पोग्गला भिज्जति ? गोयमा ! कम्मदध्ववग्गणं अहिकिच्च दुविहा पोग्गला भिज्जति / तं जहा-अणू चेव बादरा चेव 1. नेरइया णं भंते ! कतिविहा पोग्गला चिज्जंति ? गोयमा! आहारदव्यवग्गणं अहिकिच्च दुविहा पोग्गला चिजंति / तं जहा-अणू चेव बादरा चैव 2 / एवं उचिज्जति 3 / नेरइया णं भंते ! कतिविहे पोग्गले उदीरेंति ? गोयमा ! कम्मदच्वागणं अहिकिच्च दुविहे पोग्गले उदोरेति / तं जहा–अणू चेव बादरे चेव 4 / एवं वेदेति 5 / निज्जरेंति 6 / मोट्टिसु 7 / ओयति 8 / प्रोयट्टिस्संति 6 / संकामिसु 10 / संकामेति 11 / संकामिस्संति 12 / निहतिसु 13 / निहत्तेति 14 / निहत्तिस्संति 15 / निकायंसु 16 / निकाएंति 17 / निकाइस्संति 18 / सब्वेसु वि कम्मदव्ववगणमहिकिच्च / गाहा भेदित चिता उचिता उदीरिता वेदिया य निज्जिण्णा / प्रोयट्टण-संकामण-निहत्तण-निकायणे तिविह कालो // 4 // (1. 6. प्र.) हे भगवन् ! नारकजीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल भेदे जाते हैं ? (1. ६..उ.) गौतम ! कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गल भेदे जाते हैं / वे इस प्रकार हैं-अणु (सूक्ष्म) और बादर (स्थूल) 1 / / (प्र.) भगवन् ! नारक जीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल चय किये जाते हैं ? (उ.) गौतम ! आहार द्रव्यवर्गणा को अपेक्षा वे दो प्रकार के पुद्गलों का चय करते हैं, वे इस प्रकार हैं---अणु और बादर 2. ; इसी प्रकार उपचय समझना 3. / (प्र.) भगवन् ! नारक जीव कितने प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ? (उ.) गौतम ! कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं / वह इस प्रकार है—अणु और बादर 4 / शेष पद भी इसी प्रकार कहने चाहिए:-वेदते हैं 5, निर्जरा करते हैं 6, अपवर्तन को प्राप्त हुए 7, अपवर्तन को प्राप्त हो रहे हैं 8, अपवर्तन को प्राप्त करेंगे ; संक्रमण किया 10, संक्रमण करते हैं 11, संक्रमण करेंगे 12, निधत्त हुए 13, निधत्त होते हैं 14, निधत्त होंगे 15; निकाचित हुए 16, निकाचित होते हैं 17, निकाचित होंगे 18, इन सव पदों में भी कर्मद्रव्यवर्गणा को अपेक्षा (अणु और बादर पुद्गलों का कथन करना चाहिए।) गाथार्थ-भेदेगए, चय को प्राप्त हुए, उपचय को प्राप्त हए, उदीर्ण हुए, वेदे गए और निर्जीर्ण हुए (इसी प्रकार) अपवर्तन, संक्रमण, निधतन और निकाचन, (इन पिछले चार) पदों में भी तीनों प्रकार काल कहना चाहिए। (1.7) नेरइया णं भत्ते ! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गेहंति ते कि तीतकालसमए गेहति ? पडुप्पन्नकालसमए गेहंति ? प्रणागतकालसमए गेण्हति ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org