________________ पंचम शतक : उद्देशक-९] [ 521 नहीं, अपितु देव-समूह या देवनिकाय हो यथोचित है; क्योंकि यहां प्रश्न के उत्तर में देवलोक के भेद न बताकर देवों के भेद-प्रभेद बताए हैं / तत्वार्थसूत्र में देवों के चार निकाय बताए गए हैं।' ___भवनवासी देवों के दस भेद - 1. असुरकुमार, 2. नागकुमार, 3. सुवर्ग (सुपर्ण)कुमार, 4. विद्युत्कुमार, 5. अग्निकुमार, 6. द्वीपकुमार, 7. उदधिकुमार, 8. दिशाकुमार, 9. पवनकुमार और 10. स्तनितकुमार। वाणव्यन्तर देवों के पाठ भेद-किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच / ज्योतिष्क देवों के पांच भेद-सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे / वैमानिक देवों के दो भेद-कल्पोपपन्न और कल्पातीत / पहले से लेकर बारहवें देवलोक तक के देव 'कल्पोपपन्न' और उनसे ऊपर नौ ग्रेवेयक एवं पंच अनुत्तरविमानवासी देव 'कल्पातीत' कहलाते हैं। किमियं रायगिह ति य, उज्जोए अंधकार-समए य / पासंतिवासि-पुच्छा, राइंदिय देवलोगा य।। उद्देशक की संग्रह-गाथा [18 गाथार्थ] राजगृह नगर क्या है ? दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार क्यों होता है ? समय प्रादि काल का ज्ञान किन जीवों को होता है, किनको नहीं ? रात्रि-दिवस के विषय में पार्वजिनशिष्यों के प्रश्न और देवलोकविषयक प्रश्न ; इतने विषय इस नौवें उद्देशक में कहे गए हैं। // पंचम शतक : नवम उद्देशक समाप्त // 1. (क) 'देवाश्चतुनिकायाः' तत्त्वार्थसूत्र अ. 4 सु. 1 2. (क) तत्त्वार्थसूत्र अ. 4 सू. 11, 12, 13, 17-18 (ख) भगवती. (हिंदी विवेचन) भा. 2, पृ. 929 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 2, पृ. 929 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org