________________ दसमो उद्देसओ : 'चंपाचं दिमा' दशम उद्देशक : 'चम्पा-चन्द्रमा' [1] तेणं कालेणं तेणं समाएणं चंपा णाम गियरी, जहा पढिमिल्लो उद्देसनो तहा यवो एसो वि, गवरं चंदिमा भाणियन्वा / [1] उस काल और उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी। जैसे (पंचम शतक का) प्रथम उद्देशक कहा है, उसी प्रकार यह उद्देशक भी कहना चाहिए। विशेषता यह है कि यहाँ 'चन्द्रमा' कहना चाहिए। विवेचन-जम्बूद्वीप में चन्द्रमा के उदय-अस्त प्रादि से सम्बन्धित प्रतिदेशपूर्वक वर्णन-- प्रस्तुत उद्देशक के प्रथम सूत्र में चम्पानगरी में श्रमण भगवान् महावीर द्वारा प्ररूपित चन्द्रमा का उदय-अस्त-सम्बन्धी वर्णन, पंचम शतक के प्रथम उद्देशक (चम्पा-रवि) में वर्णित सूर्य के उदय-अस्त सम्बन्धी वर्णन का हवाला देकर किया गया है / चम्पा-चन्द्रमा-चन्द्रमा का उदय-अस्त-सम्बन्धी प्ररूपण श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा चम्पा नगरी में किया गया था, इसलिए इस उद्देशक का नाम 'चम्पा-चन्द्रमा' रखा गया है / रवि के बदले चन्द्रमा नाम के अतिरिक्त सारा ही वर्णन सूर्य के उदयास्त वर्णनवत् समझना चाहिए। // पंचम शतक : दशम उद्देशक समाप्त // // पंचम शतक सम्पूर्ण // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org