________________ 508] [व्याख्याप्राप्ति सूत्र [23 उ.] गौतम ! सिद्ध भगवान् सोपचय हैं, सापचय नहीं हैं, सोपचय-सापचय भी नहीं हैं, किन्तु निरुपचय-निरपचय हैं / 24. जीवाणं भंते ! केवतियं कालं निरुवचयनिरवचया ? गोयमा ! सव्वद्ध। [24 प्र.] भगवन् ! जीव कितने काल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं ? [24 उ.] गौतम ! जीव सर्वकाल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं / 25. [1] रतिया णं भंते ! केवतियं कालं सोवचया ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणे प्रावलियाए प्रसंखेज्जइभागं / [25-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिक कितने काल तक सोपचय रहते हैं ? [25-1 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट प्रावलिका के असंख्येय भाग तक नैरयिक सोपचय रहते हैं। [2] केवतियं कालं सावचया ? एवं चेव। [25-2 प्र.] भगवन् ! नैरपिक कितने काल तक सापचय रहते हैं ? [25-2 उ.] (गौतम ! ) उसी प्रकार (सोपचय के पूर्वोक्त कालमानानुसार) सापचय का काल जानना चाहिए। [3] केवतियं कालं सोवचयसावचया ? एवं चेव / [25-3 प्र.] और वे सोपचय-सापचय कितने काल तक रहते हैं ? [25-3 उ.] (गौतम ! ) सोपचय का जितना काल कहा है, उतना ही सोपचय-सापचय का काल जानना चाहिए। [4] केवतियं कालं निरुवचयनिरवचया ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहत्ता। [25.4 प्र.] नैरयिक कितने काल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं ? [25-4 उ.] गौतम ! नैरयिक जीव जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं। 26. एगिदिया सवे सोवचयसावचया सम्बद्ध / [26] सभी एकेन्द्रिय जीव सर्व काल (सर्वदा) सोपचय-सापचय रहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org