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________________ 504 ] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [13 उ.] गौतम ! सिद्ध बढ़ते हैं, घटते नहीं, वे अविस्थत भी रहते हैं / 14. जीवाणं भंते ! केवतियं कालं प्रवद्विता ? गोयमा ! सम्बद्ध। [14 प्र.] भगवन् ! जीव कितने काल तक अवस्थित रहते हैं ? [14 उ.] गौतम ! सर्वाद्धा (अर्थात्-सब काल में जीव अवस्थित ही रहते हैं)। चौबीस दण्डकों की वृद्धि, हानि और अवस्थित कालमान की प्ररूपरणा 15. [1] नेरतिया णं भंते ! केवतियं कालं वड्ढंति ? गोयमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं प्रावलियाए असंखेज्जतिभागं / [15-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिक कितने काल तक बढ़ते हैं ? [15-1 उ.] गौतम ! नैर यिक जीव जघन्यतः एक समय तक, और उत्कृष्टतः प्रावलिका के असंख्यात भाग तक बढते हैं / [2] एवं हायंति। [15-2] जिस प्रकार बढ़ने का काल कहा है, उसी प्रकार घटने का काल भी (उतना ही) कहना चाहिए। [3] नेरइया गं भंते ! केवतियं कालं अवटिया ! गोयमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता / [15-3 प्र.] भगवन् ! नैरयिक कितने काल तक अवस्थित रहते हैं ? [15-3 उ.] गौतम ! (नैरयिक जीव) जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः चौबीस मुहूर्त तक (अवस्थित रहते हैं / ) [4] एवं सत्तसु वि पुढवीसु 'वड्ढंति, हायंति' भाणियध्वं / नवरं प्रवद्वितेसु इमं नाणत्तं, तं जहा–रयणप्पभाए पुढवीए अडतालीसं मुहुत्ता, ' सक्करप्पभाए चोद्दस राइंदियाई, वालुयप्पभाए मासं, पंकप्पभाए दो मासा, धूमप्पभाए चत्तारि मासा, तमाए अट्ठ मासा, तमतमाए बारस मासा / [15-4] इसी प्रकार सातों नरक-पृथ्वियों के जीव बढ़ते हैं, घटते हैं, किन्तु अवस्थित रहने के काल में इस प्रकार भिन्नता है / यथा-रत्नप्रभापृथ्वी में 48 मुहूर्त का, शर्कराप्रभापृथ्वी में चौबीस अहोरात्रि का, बालुकाप्रभापृथ्वी में एक मास का, पंकप्रभा में दो मास का, धूमप्रभा में चार मास का, तमःप्रभा में पाठ मास का और तमस्तमःप्रभा में बारह मास का अवस्थान-काल है / 1. रत्नप्रभा आदि में उत्पाद-उद्वर्तन-विरहकाल 24 मुहूर्त आदि बताया गया है, उसके लिए देखें-प्रज्ञापना सूत्र का छठा व्युत्क्रान्ति पद ।सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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