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________________ पंचम शतक : उद्देशक-] सप्रदेश-प्रप्रदेश पुद्गलों का अल्प-बहुत्व-सबसे थोड़े एक गुणकाला आदि भाव से अप्रदेशी पुद्गल हैं, उनसे असंख्यात गुणा हैं—एक समय की स्थितिवाले-काल से प्रप्रदेशी पुदगल / उनसे असंख्यातगुणा हैं-समस्त परमाणु पुद्गल, जो द्रव्य से अप्रदेशी पुद्गल हैं, उनसे भी असंख्यात गुणे हैं-क्षेत्र से अप्रदेशो पुद्गल, जो एक-एक प्राकाशप्रदेश के अवगाहन किये हुए हैं। उनसे भी असंख्यातगुणे हैं-क्षेत्र से सप्रदेशी पुद्गल, जिनमें द्विप्रदेशावगाढ़ से लेकर असंख्येयप्रदेशावगाढ़ आते हैं / उनसे द्रव्य से सप्रदेशी पुद्गल–अर्थात-द्विप्रदेशीस्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के पुद्गल विशेषाधिक हैं। उनसे काल से सप्रदेशी पुद्गल-दो समय की स्थिति वाले से लेकर असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गल विशेषाधिक हैं / उनसे भी भाव से सप्रदेशी पुद्गल-दो गुण काले यावत् अनन्तगुणकाले पुद्गल आदि विशेषाधिक हैं।' संसारी और सिद्ध जीवों की वृद्धि हानि और अवस्थिति एवं उनके कालमान की प्ररूपरणा 10. भंते !' ति भगवं गोतमें समणं जाव एवं वदासी-जीवा णं भंते ! कि वड्डंति, हायंति, प्रवटिया ? गोयमा ! जीवा णो वड्दति, नो हायंति, प्रवद्विता / [10 प्र.] 'भगवन् !' यों कह कर भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! क्या जीव बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ? [10 उ.] गौतम ! जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, किन्तु अवस्थित रहते हैं / 11. नेरतिया णं भंते ! कि बड्ढंति, हायंति, अद्विता ? गोयमा ! नेरइया वड्ढेति वि, हायंति वि, अवडिया वि। [11 प्र. भगवन् ! क्या नैरयिक बढ़ते हैं, घटते हैं. अथवा अवस्थित रहते हैं ? [11 उ.] गौतम ! नैरयिक बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते हैं। 12. जहा नेरइया एवं जाव वेमाणिया / [12] जिस प्रकार नैरयिकों के विषय में कहा, इसी प्रकार वैमानिक-पर्यन्त (चौबीस ही दण्डकों के जीवों के विषय में) कहना चाहिए। 13. सिद्धाणं भंते ! पुच्छा। गोयमा ! सिद्धा बड्ढेति, नो हायंति, अवद्विता वि / [13 प्र.] भगवन् ! सिद्धों के विषय में मेरी पृच्छा है (कि वे बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ?) 1. (क) भगवती० अ. वृत्ति, पत्रांक 243 (ख) भगवती० (हिन्दी विवेचन) भा. 2, पृ. 901 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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