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________________ 502] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सप्रदेश-अप्रदेश के कथन में सार्द्ध अनर्द्ध और समध्य-प्रमध्य का समावेश–निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार ने यद्यपि सप्रदेश-अप्रदेश का ही निरूपण किया है, किन्तु सप्रदेश में सार्द्ध और समध्य का, तथा अप्रदेश में अनर्द्ध और अमध्य का ग्रहण कर लेना चाहिए।' - द्रव्यादि की अपेक्षा पुद्गलों को प्रप्रदेशता के विषय में जो पुद्गल द्रव्य से अप्रदेशपरमाणुरूप है, वह पुद्गल क्षेत्र से एकप्रदेशावगाढ़ होने से नियमत: अप्रदेश है / काल से वह पुद्गल यदि एक समय की स्थिति वाला है तो अप्रदेश है और यदि वह अनेक समय की स्थिति वाला है तो सप्रदेश है / इस तरह भाव से एकगुण काला आदि है तो अप्रदेश है, और अनेकगुण काला आदि है तो सप्रदेश है। जो पुद्गल क्षेत्र को अपेक्षा अप्रदेश (एकक्षेत्रावगाढ़) होता है, वह द्रव्य से कदाचित् सप्रदेश और कदाचित् अप्रदेश होता है; क्योंकि क्षेत्र (आकाश) के एक प्रदेश में रहने वाले द्वयणुक आदि सप्रदेश हैं, किन्तु क्षेत्र से वे अप्रदेश हैं; तथैव परमाणु एक प्रदेश में रहने वाला होने से द्रव्य से अप्रदेश है. वैसे ही क्षेत्र से भी अप्रदेश है / जो पुद्गल क्षेत्र से अप्रदेश है, वह काल से कदाचित् अप्रदेश और कदाचित् सप्रदेश इस प्रकार होता है / जैसे-कोई पुद्गल क्षेत्र से एकप्रदेश में रहने वाला है, वह यदि एक समय की स्थिति वाला है तो कालापेक्षया अप्रदेश है, किन्तु यदि वह अनेक समय की स्थिति वाला है तो कालापेक्षया सप्रदेश है / जो पुद्गल क्षेत्र की अपेक्षा अप्रदेश है, यदि वह अनेकगुण काला आदि है तो भाव की अपेक्षा अप्रदेश है, किन्तु यदि वह अनेकगुण काला आदि है तो क्षेत्र की अपेक्षा अप्रदेश होते हुए भी भाव की अपेक्षा सप्रदेश है / क्षेत्र से अप्रदेश पुद्गल के कथन की तरह काल और भाव से भी कथन करना चाहिए / यथा- जो पुद्गल काल से अप्रदेश होता है, वह द्रव्य से, क्षेत्र से और भाव से कदाचित् सप्रदेश और कदाचित् अप्रदेश होता है। तथा जो पुद्गल भाव से अप्रदेश होता है, वह द्रव्य से, क्षेत्र से और काल से कदाचित् सप्रदेश होता है, और कदाचित् अप्रदेश / द्रव्यादि की अपेक्षा पुद्गलों की सप्रदेशता के विषय में जो पुद्गल द्वयणकादिरूप होने से द्रव्य से सप्रदेश होता है, वह क्षेत्र से कदाचित् सप्रदेश और कदाचित् अप्रदेश होता है, क्योंकि वह यदि दो प्रदेशों में रहता है तो सप्रदेश है और एक ही प्रदेश में रहता है तो अप्रदेश है। इसी तरह काल से और भाव से भी कहना चाहिए / आकाश के दो या अधिक प्रदेशों में रहने वाला पुद्गल क्षेत्र से सप्रदेश है, वह द्रव्य से भी सप्रदेश ही होता है; क्योंकि जो पुद्गल द्रव्य से अप्रदेश होता है, वह दो आदि प्रदेशों में नहीं रह सकता / जो पुद्गल क्षेत्र से सप्रदेश होता है, वह काल से और भाव से कदाचित् सप्रदेश होता है, कदाचित् अप्रदेश होता है / जो पुद्गल काल से सप्रदेश होता है, वह द्रव्य से, क्षेत्र से और भाव से कदाचित् सप्रदेश होता है, कदाचित् अप्रदेश होता है / ___ जो पुद्गल भाव से सप्रदेश होता है, वह द्रव्य से, क्षेत्र से और काल से कदाचित् सप्रदेश और कदाचित् अप्रदेश होता है / 1. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 241 (ख) भगवती सूत्र (हिन्दी विवेचन) भा. 2, पृ. 900 2. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक 241 से 243 तक (ख) भगवतीसूत्र (हिन्दी विवेचन) भा. 2, पृ. 900-901 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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