________________ पंचम शतक : उद्देशक-८ ] [ 501 तथा भाव से भजना से (विकल्प से-कदाचित् सप्रदेश, कदाचित् अप्रदेश) जानना चाहिए। जैसे (सप्रदेशी पुद्गल के सम्बन्ध में) द्रव्य से (द्रव्य की अपेक्षा से) कहा, वैसे ही काल से (कालादेश से) और भाव (भावादेश) से भी कथन करना चाहिए / 8. एतेसि णं भंते ! योग्गलाणं दव्वादेसेणं खेत्तादेसेणं कालादेसेणं भावादेसेणं सपदेसाण य प्रपदेसाण य कतरे कतरेहितो जाव विसेसाहिया वा ? नारयपुत्ता ! सव्वथोवा पोग्गला भावादे सेणं अपदसा, कालादे सेणं अपदसा असंखेज्जगुणा, रत्वादेसेणं अपदेसा असंखेज्जगुणा, खेत्तादेसेणं अपदसा प्रसंखेज्जगुणा, खेत्ताद सेणं चेव सपदे सा प्रसंखेज्जगुणा, दव्वाद सेणं सपद सा विसेसाहिया, कालाद सेणं सपदसा विसेसाहिया, भावाद सेणं सपद सा विसेसाहिया। [8 प्र.] हे भगवन् ! (निन्थीपुत्र ! ) द्रव्यादेश से, क्षेत्रादेश से, कालादेश से और भावादेश से, सप्रदेश और अप्रदेश पुद्गलों में कौन किन से कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? [उ.] हे नारदपुत्र ! भावादेश से अप्रदेश पुद्गल सबसे थोड़े हैं। उनकी अपेक्षा कालादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं; उनको अपेक्षा द्रव्यादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं और उनकी अपेक्षा भी क्षेत्रादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं। उनसे क्षेत्रादेश से सप्रदेश पुद्गल असंख्यातगुणा हैं, उनसे द्रव्यादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं, उनसे कालादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं और उनसे भी भावादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं / 6. तए णं से. नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगारं बंदइ नमसइ, नियंठिपुत्तं अणगारं वंदित्ता नमंसित्ता एतम सम्म विणएणं भुज्जो भुज्जो खामेति, २त्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ / __[6] इसके पश्चात् (यह सुन कर) नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार को वन्दन नमस्कार किया। उन्हें (निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार को) वन्दन-नमस्कार करके उनसे इस (अपनी कही हुई मिथ्या) बात के लिए सम्यक् विनयपूर्वक-बार-बार उन्होंने क्षमायाचना को। इस प्रकार क्षमायाचना करके वे (नारदपुत्र अनगार) संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे। विवेचन-द्रव्यादि की अपेक्षा पुद्गलों को सप्रदेशता-प्रप्रदेशता के सम्बन्ध में निर्गन्योपुत्र और नारदपुत्र अनगार को चर्चा प्रस्तुत : सूत्रों में भगवान महावीर के ही दो शिष्यों-निर्ग्रन्थीपुत्र और नारदपुत्र के बीच द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा से सर्वपुद्गलों को सार्द्धता-अनर्द्धता, समध्यता-अमध्यता और सप्रदेशता-अप्रदेशता के सम्बन्ध में हुई मधुर चर्चा का वर्णन किया गया है।' द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावादेश का स्वरूप-द्रव्य की अपेक्षा परमाणुत्व आदि का कथन करना द्रव्यादेश, एकप्रदेशावगाढत्व इत्यादि का कथन करना क्षेत्राद श; एक समय की स्थिति आदि का कथन कालादश और एकगुण काला इत्यादि कथन भावादेश कहलाता है। दूसरे शब्दों में द्रव्यादि की अपेक्षा क्रमशः द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावादेश का अर्थ है / 2 1. वियाहपण्णत्तिसुत्त (मूलपाठ टिप्पणयुक्त) भा. 1, पृ. 219 से 221 2. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 241 (ख) भगवतीसूत्र (हिन्दी विवेचन) भा. 2, पृ. 899 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org