________________ 500] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसून और फिर हे आर्य ! यदि कालादेश से भी समस्त पुद्गल साद्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, तो तुम्हारे मतानुसार एक समय की स्थिति वाला पुद्गल भी साद्ध, समध्य एवं सप्रदेश होना चाहिए। इसी प्रकार भावादेश से भी हे आर्य ! सभी पुद्गल यदि साद्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, तो तदनुसार एकगुण काला पुद्गल भी तुम्हें सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश मानना चाहिए / यदि आपके मतानुसार ऐसा नहीं है, तो फिर आपने जो यह कहा था कि द्रव्यादेश से भी सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्र देश हैं, क्षेत्रादेश से भी उसी तरह हैं, कालादेश से और भावादेश से भी उसी तरह हैं, किन्तु वे अन, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं, इस प्रकार का आपका यह कथन मिथ्या हो जाता है। 6. तए णं से नारयपुत्ते प्रणगारे नियंठिपुत्तं अणगार एवं वदासिनो खलु वयं देवाणुप्पिया! एतम जाणामो पासामो, जति णं देवाणुप्पिया! नो गिलायंति परिकहित्तए तं इच्छामि गं देवाणुप्पियाणं अंतिए एतम₹ सोच्चा निसम्म जाणित्तए। १६-जिज्ञासा] तब नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा-"हे देवानुप्रिय ! निश्चय ही हम इस अर्थ (तथ्य) को नहीं जानते-देखते (अर्थात्-इस विषय का ज्ञान और दर्शन हमें नहीं है / ) हे देवानुप्रिय ! यदि आपको इस अर्थ के परिकथन (स्पष्टीकरणपूर्वक कहने) में किसी प्रकार की ग्लानि, ऊब या अप्रसन्नता) न हो तो मैं आप देवानुप्रिय से इस अर्थ को सुनकर, अवधारणपूर्वक जानना चाहता हूँ।" 7. तए णं से नियंठिपुत्ते अणगारे नारयपुत्तं प्रणगारं एवं वदासी-दन्वादेसेण वि मे प्रज्जो सत्यपोग्गला सपदेसा वि अपदेसा वि अणंता / खेत्तादेसेण वि एवं चेव / कालादेसेण वि एवं चेव / जे दवतो अपदेसे से खेत्तो नियमा अपदेसे, कालतो सिय सपदेसे सिय अपदेसे, भावनो सिय सपदेसे सिय अपदेसे। जे खेत्तत्रो अपदेसे से दव्वतो सिय सपदेसे सिय अपदेसे, कालतो भयणाए, भावतो भयणाए / जहा खेत्तमो एवं कालतो। भावतो / जे दबतो सपदेसे से खेत्ततो सिय संपदेसे सिय अपदेसे, एवं कालतो भावतो वि / जे खेत्ततो सपदेसे से दवतो नियमा सपदेसे, कालो भयणाए, भावतो भयणाए / जहा दव्वतो तहा कालतो भावतो वि। [७-समाधान] इस पर निन्थीपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा (समाधान किया)-हे आर्य ! मेरी धारणानुसार द्रव्यादेश से भी पुद्गल सप्रदेश भी हैं, अप्रदेश भी हैं, और वे पुद्गल अनन्त हैं / क्षेत्रादेश से भी इसी तरह हैं, और कालादेश से तथा भावादेश से भी वे इसी तरह हैं / जो पुद्गल द्रव्यादेश से अप्रदेश हैं, वे क्षेत्रादेश से भी नियमत: (निश्चितरूप से) अप्रदेश हैं / कालादेश से उनमें से कोई सप्रदेश होते हैं, कोई अप्रदेश होते हैं और भावादेश से भी कोई सप्रदेश तथा कोई अप्रदेश होते हैं / जो पुद्गल क्षेत्रादेश से अप्रदेश होते हैं, उनमें कोई द्रव्यादेश से सप्रदेश और कोई अप्रदेश होते हैं, कालादेश और भाबादेश से इसी प्रकार की भजना (कोई सप्रदेश और कोई अप्रदेश) जाननी चाहिए। जिस प्रकार क्षेत्र (क्षेत्रादेश) से कहा, उसी प्रकार काल से और भाव से भी कहना चाहिए / जो पुद्गल द्रव्य से सप्रदेश होते हैं, वे क्षेत्र से कोई सप्रदेश और कोई अप्रदेश होते हैं ; इसी प्रकार काल से और भाव से भी वे सप्रदेश और अप्रदेश समझ लेने चाहिए / जो पुद्गल क्षेत्र से सप्रदेश होते हैं; वे द्रव्य से नियमत: (निश्चित हो) सप्रदेश होते हैं, किन्तु काल से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org