SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 538
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम शतक : उद्देशक-८] [ 499 4. तए णं से नियंठिपुत्ते अणगारे नारदपुत्तं अणगारं एवं वदासो-जति णं ते अज्जो ! सम्वपोग्गला सग्रड्ढा समझा सपदेसा, नो अणड्ढा प्रमज्झा अपदेसा; कि दम्बादेसेणं प्रज्जो ! सबपोग्गला सप्रड्ढा समझा सपदेसा, नो अणड्ढा प्रमज्झा अपदेसा ? खेत्तादेसेणं अज्जो ! सव्वपोग्गला सप्रड्ढा समझा सपदेसा? तह चेव / कालादेसेणं 0 तं चेव ? भावादेसेणं अज्जो ! 0 तं चेव ? तए णं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठियुत्तं अणगारं एवं वदासी–दब्वादेसेण वि मे प्रज्जो ! सवपोग्गला सड्ढा समझा सपदेसा, नो अणड्ढा प्रमज्झा अपदेसा; खेत्ताएसेण वि सवपोग्गला सयड्ढा०; तह चेव कालादेसेण वि; तं चैव भावावेसेण वि। [४-प्र.] तत्पश्चात् उन निग्रंन्थीपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से यों कहा-हे आर्य ! यदि तुम्हारे मतानुसार सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं. अनद्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं, तो क्या, हे आर्य ! द्रव्यादेश (द्रव्य को अपेक्षा) से वे सर्वपुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं ? अथवा हे आर्य ! क्या क्षेत्रादेश से सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश आदि पूर्ववत हैं ? या कालादेश से सभी पुद्गल उसी प्रकार हैं या भावादेश से समस्त पुद्गल उसी प्रकार हैं ? [४-उ.] तदनन्तर वह नारदपुत्र अनगार, निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार से यों कहने लगे हे आर्य ! मेरे मतानुसार (विचार में), द्रव्यादेश से भी सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध अमध्य और प्रदेश नहीं हैं। क्षेत्रादेश से भी सभी पुद्गल सार्द्ध , समध्य आदि उसी तरह हैं, कालादेश से भी वे सब उसी तरह हैं, तथा भावादेश से भी उसी प्रकार हैं / 5. तए णं से नियंठिपुत्ते अणगारे नारयपुत्तं प्रणगारं एवं क्यासी–जति णं प्रज्जो ! बव्वादेसेणं सचपोग्गला सड्ढा समझा सपएसा, नो अणड्ढा प्रमझा अपएसा; एवं ते परमाणुपोग्गले वि सड्ढे समझे सपएसे, जो अणड्ढे अमझे अपएसे; जति णं अज्जो! खेत्तादेसेण वि सम्वपोग्गला सन० 3, जाव एवं ते एगपदेसोगाढे वि पोग्गले सड्ढे समज्झे सपदेसे; जति णं प्रज्जो ! कालादेसेणं सबपोग्गला सप्रड्ढा समझा सपएसा; एवं ते एगसमयठितीए वि पोगले 3'; तं चेक जति गं अज्जो! भावादेसेणं सब्वपोग्गला सप्रड्ढा समझा सपएसा 3', एवं ते एगगुणकालए वि पोग्गले सप्रड्ढे 31 तं चेव; अह ते एवं न भवति, तो जं वदति दम्वादेसेण वि सव्वपोग्गला सम०१ 3 नो अणड्ढा अमज्झा प्रपदेसा, एवं खेत्तादेसेण वि, काला०, भावादेसेण वि तं णं मिच्छा। [5 प्र.] इस पर निर्गन्थपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से इस प्रकार प्रतिप्रश्न कियाहे आर्य ! तुम्हारे मतानुसार द्रव्यादेश से सभी पुदगल यदि सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, तो क्या तुम्हारे मतानुसार परमाणुपुद्गल भी इसी प्रकार सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं ? और हे आर्य ! क्षेत्रादेश से भी यदि सभी पुद्गल सार्द्ध , समध्य और सप्रदेश हैं तो तुम्हारे मतानुसार एकप्रदेशावगाढ़ पुद्गल भी सार्द्ध , समध्य एवं सप्रदेश होने चाहिए ! 1. यहाँ '3' का अंक तथा 'जाव' पद 'सअढा समज्झा सपदेसा' पाठ का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy