________________ अट्ठमो उद्देसओ : नियंठ अष्टम उद्देशक : निर्ग्रन्थ पुद्गलों की द्रव्यादि की अपेक्षा सप्रदेशता-अप्रदेशता आदि के सम्बन्ध में निर्ग्रन्थीपुत्र और नारदपुत्र की चर्चा 1. तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव परिसा पडिगता। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवान महावीरस्स अंतेवासी नारयपुत्ते नामं अणगारे पगतिभद्दए जाव' विहरति / [1] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर पधारे / परिषद् दर्शन के लिये गई, यावत् धर्मोपदेश श्रवण कर वापस लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के अन्तेवासी (शिष्य) नारदपुत्र नाम के अनगार थे। वे प्रकृतिभद्र थे यावत् प्रात्मा को भावित करते विचरते थे / 2. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगरओ महावीरस्स अंतेवासी नियंठिपुत्ते णाम प्रणगारे पगति भदए जावर विहरति / [2] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी निर्ग्रन्थीपुत्र नामक अनगार थे / वे प्रकृति से भद्र थे, यावत् विचरण करते थे। 3. तए णं से नियंठिपुत्ते अणगारे जेणामेव नारयपुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता नारयपुत्तं अणगारं एवं वदासी-सब्वपोग्गला ते अज्जो ! कि सअड्डा समझा सपदेसा? उदाहु प्रणड्डा समझा अपएसा ? 'प्रज्जो' ति नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगारं एवं वदासी-सव्वपोग्गला मे प्रज्जो ! सअट्टा समझा सपदेसा, नो अणड्ढा अमाझा प्रयएसा। [3 प्र.] एक बार निर्गन्थीपुत्र अनगार, जहाँ नारदपुत्र नामक अनगार थे, वहाँ पाए और उनके पास आकर उन्होंने नारदपुत्र अनगार से इस प्रकार पूछा--(कहा-) हे आर्य! तुम्हारे मतानुसार सब पुद्गल क्या सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश हैं ? 63 उ. हे आर्य !' इस प्रकार सम्बोधित कर नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा-आर्य ; मेरे मतानुसार सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं। 1. यहाँ दोनों जगह 'जाब' पद से 'विणीए' इत्यादि पूर्ववणित श्रमण वर्णन कहना चाहिए। 2. यहां 'जाव' शब्द से पूर्वसूचित 'समोस?' तक भगवान् का तथा परिषद् का वर्णन कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org