________________ 496] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 40. पंच हेतू पण्णत्ता, तं जहा-हेतुणा ण जाणति जाव हेतुणा अण्णाणमरणं मरति / [40] पांच हेतु कहे गए हैं। यथा-(१) हेतु से नहीं जानता, यावन् (5) हेतु से अज्ञानमरण मरता है। 41. पंच आहेऊ पण्णत्ता, तं जहा-अहेउं जाणइ जाव अहे केवलिमरणं मरति / [41] पांच आहेतु कहे गए हैं—(१) अहेतु को जानता है; यावत् (5) अहेतुयुक्त केवलिमरण मरता है। 42. पंच आहेऊ पण्णत्ता, तं जहा–अहेउणा जाणइ जाव अहेउणा केवलिमरणं मरइ। [42] पांच अहेतु कहे गए हैं-(१) अहेतु द्वारा जानता है, यावत् (5) अहेतु द्वारा केवलिमरण मरता है। 43. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा-अहेउं न जाणइ जाव आहेउं छउमत्थमरणं मरइ / [43] पांच अहेतु कहे गए हैं-(१) अहेतु को नहीं जानता, यावत् (5) अहेतुयुक्त छद्मस्थमरण मरता है। 44. पंच आहेऊ पण्णता, तं जहा--अहेउणा न जाणद जाव अहेउणा छउमस्थमरणं मरइ / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। // पंचमसए : सत्तमो उद्देसनो समत्तो / / [44] पांच अहेतु कहे गए हैं--(१) अहेतु से नहीं जानता, यावत् (5) अहेतु से छद्मस्थमरण मरता है। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैं'; यों कह कर यावत् श्रीगौतमस्वामी विचरण करते हैं / विवेचन-विविध प्रपेक्षानों से पांच हेतु-अहेतुनों का निरूपण-प्रस्तुत आठ सूत्रों (सू. 37 से 44) द्वारा शास्त्रकार ने भिन्न-भिन्न दृष्टियों से, तथा विभिन्न क्रियाओं की अपेक्षा से पांच प्रकार के हेतुओं और पांच प्रकार के अहेतुओं का तात्त्विक निरूपण किया है। हेतु-अहेतु विषयक सूत्रों का रहस्य–प्रस्तुत आठ सूत्र; हेतु को, हेतु द्वारा; अहेतु को, अहेतु द्वारा इत्यादि रूप से कहे गए हैं। इनमें से प्रारम्भ के चार सूत्र छद्मस्थ की अपेक्षा से और बाद के 4 सूत्र केवली की अपेक्षा से कहे गए हैं / पहले के चार सूत्रों में से पहला-दूसरा सूत्र सम्यग्दृष्टि छद्मस्थ की अपेक्षा से और तीसरा-चौथा सूत्र मिथ्यादृष्टि छद्मस्थ की अपेक्षा से है / इन दो-दो सूत्रों में अन्तर यह है कि प्रथम दो प्रकार के व्यक्ति छद्मस्थ होने से साध्य का निश्चय करने के लिए साध्य से अविनाभूत कारण हेतु को अथवा हेतु से सम्यक् जानते हैं, देखते हैं, श्रद्धा करते हैं, साध्यसिद्धि के लिए सम्यक् हेतु प्रयोग करके वस्तुतत्त्व प्राप्त करते हैं, और सम्यग्दृष्टि छद्मस्थ का मरण हेतुपूर्वक या हेतु से समझ कर होता है, अज्ञानमरण नहीं होता; जबकि आगे के दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org