________________ पंचम शतक : उद्देशक-७ ] [495 विवेचन--चौबीस दण्डकों के जीवों के प्रारम्भपरिग्रहयुक्त होने की सहेतुक प्ररूपणाप्रस्तुत सात सूत्रों (सू. 30 से 36 तक) में नारकों से लेकर वैमानिक तक चौवीस ही दण्डकों के जीवों के आरम्भ-परिग्रहयुक्त होने को कारणसहित प्ररूपणा विविध प्रश्नोत्तरों द्वारा की गई है। प्रारम्भ और परिग्रह का स्वरूप---प्रारम्भ का अर्थ है- वह प्रवत्ति जिससे किसी भी जीव का उपमर्दन--प्राणहनन होता हो / और परिग्रह का अर्थ है-किसी भी वस्तु या भाव का ममतामूर्छापूर्वक ग्रहण या संग्रह / यद्यपि एके न्द्रिय प्रादि जीव प्रारम्भ करते या परिग्रहयुक्त होते दिखाई नहीं देते, तथापि जब तक जीव द्वारा मन-वचन-काया से स्वेच्छा से आरम्भ एवं परिग्रह का प्रत्याख्यान (त्याग) नहीं किया जाता, तब तक प्रारम्भ और परिग्रह का दोष लगता ही है, इसलिए उन्हें आरम्भ-परिग्रहयुक्त कहा गया है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय प्राणियों के भी सिद्धान्तानुसार शरीर, कर्म एवं कुछ सम्बन्धित उपकरणों का परिग्रह होता है, और उनके द्वारा अपने खाद्य, शरीररक्षा आदि कारणों से प्रारम्भ भी होता है। लियंचपंचेन्द्रिय जीवों, मनुष्यों, नारकों, तथा समस्त प्रकार के देवों के द्वारा प्रारम्भ और परिग्रह में लिप्तता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है / यद्यपि मनुष्यों में वीतराग पुरुष, केवली, तथा निग्रन्थ साधुसाध्वी प्रारम्भ-परिग्रह से मुक्त होते हैं, किन्तु यहाँ समग्र मनुष्य जाति की अपेक्षा से मनुष्य को सारम्भ-सपरिग्रह बताया गया है।' विविध अपेक्षानों से पांच हेतु-अहेतुओं का निरूपण 37. पंच हेतू पण्णत्ता, तं जहा-हेतु जाणति, हेतु पासति, हेतु बुज्झति, हेतु अभिसमागच्छति, हेतुं छउमत्थमरणं मरति / [37] पाँच हेतु कहे गए हैं, वे इस प्रकार हैं-(१) हेतु को जानता है, (2) हेतु को देखता (सामान्यरूप से जानता) है, (3) हेतु का बोध प्राप्त करता तात्त्विक श्रद्धान करता है, (4) हेतु का अभिसमागम-अभिमुख होकर सम्यक् रूप से प्राप्त करता है, और (5) हेतुयुक्त छदमस्थमरणपूर्वक मरता है। 38. पंच हेतू पण्णत्ता, तं जहा-हेतुणा जाणति जाव हेतुणा छउमत्थमरणं मरति / [38] पाँच हेतु (प्रकारान्तर से) कहे गए हैं / वे इस प्रकार-(१) हेतु (अनुमान) द्वारा (अनुमेय को) सम्यक् जानता है, (2) हेतु (अनुमान) से देखता (सामान्य ज्ञान करता) है; (3) हेतु द्वारा (वस्तु-तत्त्व को सम्यक् जानकर) श्रद्धा करता है, (4) हेतु द्वारा सम्यक्तया प्राप्त करता है, और (5) हेतु (अध्यवसायादि) से छद्मस्थमरण मरता है / 36. पंच हेतू पण्णत्ता, तं जहा हेतुन जाणइ जाव हेतु अण्णाणमरणं मरति / [39] पाँच हेतु (मिथ्यादष्टि की अपेक्षा से) कहे गए हैं। यथा-(१) हेतु को नहीं जानता, (2) हेतु को नहीं देखता (3) हेतु की बोधप्राप्ति (श्रद्धा) नहीं करता, (4) हेतु को प्राप्त नहीं करता, और (5) हेतुयुक्त अज्ञानमरण मरता है / 1. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 238 (ब) वियाहपण्णत्तिसुतं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. 1, पृ. 216 से 218 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org