________________ 492 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [30-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से वे प्रारम्भयुक्त एवं परिग्रह-सहित होते हैं, किन्तु अनारम्भी एवं अपरिग्रही नहीं होते / [30-2 उ.] गौतम ! नैरयिक पृथ्वीकाय का समारम्भ करते हैं, यावत् त्रसकाय का समारम्भ करते हैं, (इसलिए वे आरम्भयुक्त हैं) तथा उन्होंने शरीर परिगृहीत किये (ममत्वरूप से ग्रहण किये-अपनाए हुए हैं, कर्म (ज्ञानावरणीयादिकर्मवर्गणा के पुद्गलरूप द्रव्यकर्म तथा रागद्वेषादिरूप भावकर्म) परिगृहीत किये हुए हैं, और, सचित्त अचित्त एवं मिश्र द्रव्य परिगृहीत किये (ममत्त्वपूर्वक ग्रहण किये) हुए हैं, इस कारण से हे गौतम ! नरयिक परिग्रहसहित हैं, किन्तु अनारम्भी और अपरिग्रही नहीं हैं। 31. [1] असुरकुमारा णं भंते ! कि सारंमा सपरिग्गहा ? उदाहु अणारंभा अपरिग्गहा ? गोयमा ! असुरकुमारा सारंभा सपरिगहा, नो अणारंभा अपरिग्गहा। __[31-1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार क्या प्रारम्भयुक्त एवं परिग्रह-सहित होते हैं, अथवा अनारम्भी एवं अपरिग्रही होते हैं ? [31-1 उ.] गौतम ! असुरकुमार भी सारम्भ एवं सपरिग्रह होते हैं, किन्तु अनारम्भी एवं अपरिग्रही नहीं होते। [2] से केण?णं० ? गोयमा ! असुरकुमारा णं पुढविकायं समारंभंति जाब तसकायं समारंभंति, सरोरा परिगहिया भवंति, कम्मा परिगहिया भवंति, मवणा परि० भवंति, देवा देवीग्रो मणुस्सा मणुस्सोमोतिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीनो परिम्गहियानो भवंति, असण-सपण-भंडमत्तोवगरणा परिग्गहिया भवंति, सचित्त-प्रचित्त-मीसयाई दब्बाइं परिग्गहियाई भवंति ; से तेण?णं तहेव / / [31-2 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार किस कारण से सारम्भ एवं सपरिग्रह होते हैं, किन्तु अनारम्भी एवं अपरिग्रही नहीं होते ? [31-2 उ.] गौतम ! असुरकुमार पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय तक का समारम्भ करते हैं, तथा उन्होंने शरीर परिगृहीत किये हुए हैं, कर्म परिगृहीत किये हुए हैं, भवन परिगृहीत (ममत्वपूर्वक ग्रहण) किये हुए हैं, वे देव-देवियों, मनुष्य पुरुष-स्त्रियों, तिर्यञ्च नर-मादाओं को परिगृहीत किये हुए हैं, तथा वे अासन, शयन, भाण्ड (मिट्टी के बर्तन या अन्य सामान) मात्रक (बर्तन-कांसो अादि धातुनों के पात्र), एवं विविध उपकरण (कड़ाही, कुड़छी आदि) परिगृहीत किये (ममतापूर्वक संग्रह किये) हुए हैं; एवं सचित्त, अचित्त तथा मिश्र द्रव्य परिगृहीत किये हुए हैं / इस कारण से वे आरम्भयुक्त एवं परिग्रहसहित हैं, किन्तु अनारम्भी और अपरिग्रही नहीं हैं। [3] एवं जाव थणियकुमारा। [31-3] इसी प्रकार (नागकुमार से लेकर) यावत् स्तनितकुमार तक कहना चाहिए / 32. एगिदिया जहा नेरइया / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org