________________ 460] [ ध्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 27. सहपरिणयस्स णं भंते ! पोग्गलस्स अंतरं कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्को सेणं असंखेज्जं कालं / {27 प्र.] भगवन् ! शब्दपरिणत पुद्गल का अन्तर काल को अपेक्षा कितने काल का होता है ? [27 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय का, उत्कृष्टतः असंख्येय काल का अन्तर होता है। 28. असद्दपरिणयस्स गं भंते ! पोग्गलस्स अंतरं कालमो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं एगं समयं, उक्कोसेणं प्रावलियाए असंखेज्जइभागं / [28 प्र. भगवन् ! अशब्दपरिणत पुद्गल का अन्तर कालतः कितने काल का होता है ? [28 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय का और उत्कृष्टतः प्रावलिका के असंख्येय भाग का अन्तर होता है। विवेचन-विविध पुद्गलों का अन्तर-काल-प्रस्तुत सात (सू. 22 से 28 तक) सूत्रों में परमाणपदगल, द्विप्रदेशीस्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी तक के सामान्य अन्तर-काल तथा सकम्प निष्कम्प वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श-सक्ष्म-बादरपरिणत एवं शब्दपरिणत-प्रशब्दपरिणत के विशिष्ट अन्तर काल का निरूपण किया गया है / अन्तरकाल की व्याख्या-एक विशिष्ट पुद्गल अपना वह वैशिष्ट्य छोड़ कर दूसरे रूप में परिणत हो जाने पर फिर वापस उसी भूतपूर्व विशिष्टरूप को जितने काल बाद प्राप्त करता है, उसे ही अन्तरकाल कहते हैं।' क्षेत्रादि-स्थानायु का अल्प-बहुत्व 29. एयस्स णं भंते ! दध्वटाणाउयस्स खेतढाणाउयस्स प्रोगाहणट्ठाणाउयस्स भावट्ठरणाउयस्स कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा ? __ गोयमा ! सम्वत्थोवे खेत्तट्टाणाउए, प्रोगाहणढाणाउए असंखेज्जगुणे, दबढाणाउए प्रसंखेज्जगुणे, भावढाणाउए असंखेज्जगुणे। खेत्तोगाहण-दव्वे भावट्ठाणाउयं च प्रष्पबहुं / खेत्ते सम्वत्थोवे सेसा ठाणा असंखगुणा // 1 // [29 प्र. भगवन् ! इन द्रव्यस्थानायु, क्षेत्रस्थानायु, अवगाहनास्थानायु और भावस्थानायु; इन सबमें कौन किससे कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक है ? / 29 उ.] गौतम ! सबसे कम क्षेत्रस्थानायु है, उससे अवगाहनास्थानायु असंख्येयगुणा है, उससे द्रव्य-स्थानायु असंख्येगुणा है और उससे भावस्थानायु असंख्येयमुणा है / 1. भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 235 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org