________________ पंचम शतक : उद्देशक 7] [489 [23-1 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्टतः अनन्तकाल का अन्तर होता है ? [2] एवं जाव प्रणंतपदेसिनो। [23-2] इसी तरह (त्रिप्रदेशिकस्कन्ध से लेकर) यावत् अनन्तप्रदेशिकस्कन्ध तक कहना चाहिए / 24. [1] एगपदेसोगाढस्स णं भंते ! पोग्गलस्स सेयस्स अंतरं कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं / [24-1 प्र.] भगवन् ! एकप्रदेशावगाढ़ सकम्प पुद्गल का अन्तर कितने काल का होता है ? (अर्थात्-एक अाकाश-प्रदेश में स्थित सकम्प पुद्गल अपना कम्पन बंद करे, तो उसे पुनः कम्पन करने में सकम्प होने में कितना समय लगता है ?) [24-1 उ.] हे गौतम ! जघन्यतः एक समय का, और उत्कृष्टतः असंख्येयकाल का अन्तर होता है / (अर्थात्-वह पुद्गल जब कम्पन करता रुक जाए-अकम्प अवस्था को प्राप्त हो और फिर कम्पन प्रारम्भ करे-सकम्प बने तो उसका अन्तर कम से कम एक समय और अधिक से अधिक असंख्यात काल का है।) [2] एवं जाव प्रसंखेज्जपदेसोगाढे। [24-2] इसी तरह (द्विप्रदेशावगाढ़ सकम्प पुद्गल से लेकर) यावत् असंख्यप्रदेशावगाढ़ तक का अन्तर कहना चाहिए। 25. [1] एगपदेसोगाढस्स णं भंते ! पोग्गलस्स निरेयस्स अंतरं कालतो केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं प्रावलियाए असंखेज्जइभागं / [25-1 प्र.] भगवन् ! एकप्रदेशावगाढ निष्कम्प पुद्गल का अन्तर कालतः कितने काल का होता है ? [25-1 उ.] गौतम ! जघन्यतः एक समय का और उत्कृष्टतः श्रावलिका के असंख्येय भाग का अन्तर होता है। [2] एवं जाव असंखेज्जपएसोगाढे / [25-2] इसी तरह (द्विप्रदेशावगाढ निष्कम्प पुद्गल से लेकर) यावत् असंख्येयप्रदेशावगाढ तक कहना चाहिए। 26. वण्ण-गंध-रस-फास-सुहमपरिणय-बादरपरिणयाणं एतेसि जच्चेव संचिटणा तं चेव अंतरं पि भाणियब्वं / _ [26] वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्शगत, सूक्ष्म-परिणत एवं बादरपरिणत पुद्गलों का जो संस्थितिकाल (संचिट्ठणाकाल) कहा गया है, वही उनका अन्तरकाल समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org