________________ 488] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [20 प्र.) भगवन् ! शब्दपरिणत पुद्गल काल की अपेक्षा से कब तक (शब्दपरिणत) रहता है ? [20 उ.] गौतम ! शब्दपरिणतपुद्गल जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः आवलिका के असंख्येय भाग तक रहता है। 21. असहपरिणते जहा एगगुणकालए / [21] जिस प्रकार एकगुण काले पुद्गल के विषय में कहा है, उसी तरह अशब्दपरिणत पुद्गल (की कालावधि) के विषय में (कहना चाहिए। विवेचन-द्रव्य-क्षेत्र-भावगत पुदगलों का काल को अपेक्षा से निरूपण-प्रस्तुत आठ सूत्रों द्वारा शास्त्रकार ने द्रव्यगत, क्षेत्रगत, एवं वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्शभावगत पुद्गलों का काल की अपेक्षा से निरूपण किया है। द्रव्य-क्षेत्र-भावगतपुद्गल---प्रस्तुत सूत्रों में 'परमाणुपुद्गल' का उल्लेख करके द्रव्यगत पुद्गल की अोर, एकप्रदेशावगाढ़ आदि कथन करके क्षेत्रगतपुद्गल की ओर, तथा वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श गुणयुक्त, शब्दपरिणत-अशब्दपरिणत, सकम्प-निष्कम्प, एकगुण कृष्ण इत्यादि कथन से भावगत पुद्गल की ओर संकेत किया है। तथा इन सब प्रकार के विशिष्ट पुद्गलों का कालसम्बन्धी अर्थात् पुद्गलों की संस्थितिसम्बन्धी निरूपण है। कोई भी पुद्गल 'अनन्तप्रदेशावगाढ़' नहीं होता, वह उत्कृष्ट असंख्येयप्रदेशावगाढ़ होता है, क्योंकि पुदगल लोकाकाश में ही रहते हैं और लोकाकाश के प्रदेश असंख्यात ही हैं / इसी तरह परमाणुपुद्गल उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक रहता है, उसके पश्चात् पुद्गलों की एकरूप स्थिति नहीं रहती। विविध पुद्गलों का अन्तरकाल 22. परमाणुपोग्गलस्स णं भते अंतरं कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं / [22 प्र.] भगवन् ! परमाणु-पुद्गल का काल की अपेक्षा से कितना लम्बा अन्तर होता है ? (अर्थात्-जो पुद्गल अभी परमाणुरूप है उसे अपना परमाणुपन छोड़कर, स्कन्धादिरूप में परिणत होने पर, पुनः परमाणुपन प्राप्त करने में कितने लम्बे काल का अन्तर होता है ?) [22 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्येय काल का अन्तर होता है / 23. [1] दुप्पदेसियस णं भंते ! खंधस्स अंतरं कालमो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं प्रणतं कालं / [22-1 प्र.] भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध का काल की अपेक्षा से कितना लम्बा अन्तर होता है ? 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 235 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org