________________ पंचम शतक : उद्देशक-७] [ 487 [3] एगपदेसोगाढे णं भंते ! पोग्गले निरेए कालमो केचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं / [15-3 प्र.) भगवन् ! एक प्राकाशप्रदेश में अवगाढ़ पुद्गल काल की अपेक्षा से कब तक निष्कम्प (निरेज) रहता है ? [15-3 उ.] गौतम ! (एक-प्रदेशावगाढ़ पुद्गल) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) असंख्येय काल तक निष्कम्प रहता है / [4] एवं जाव असंखेज्जपदेसोगा। [15-4] इसी प्रकार (द्विप्रदेशावगाढ़ से लेकर) यावत् असंख्येय प्रदेशावगाढ़ तक (के विषय में कहना चाहिए।) 16. [1] एगगुणकालए णं भंते ! पोग्गले कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं / [16-1 प्र.] भगवन् ! एकगुण काला पुद्गल काल की अपेक्षा से कब तक (एकगुण काला) रहता है ? [16-1 उ.] गौतम ! जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः असंख्येयकाल तक (एकगुण काला पुद्गल रहता है।) [2] एवं जाव अणंतगुणकालए / [16-2} इसी प्रकार (द्विगुणकाले पुद्गल से लेकर) यावत् अनन्तगुणकाले पुद्गल का (पूर्वोक्त प्रकार से) कथन करना चाहिए। 17. एवं वण्ण-गंध-रस-फास. जाव अणंतगुणलुक्खे / [17] इसी प्रकार (एक गुण) वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले पुद्गल के विषय में यावत् अनन्तगुण रूक्ष पुद्गल तक पूर्वोक्त प्रकार से काल की अपेक्षा से कथन करना चाहिए। 18. एवं सुहमपरिणए पोग्गले / [18] इसी प्रकार सूक्ष्म-परिणत (सूक्ष्म-परिणामी) पुद्गल के सम्बन्ध में कहना चाहिए। 16. एवं बादरपरिणए पोग्गले / ___ [19] इसी प्रकार बादर-परिणत (स्थूल परिणाम वाले) पुद्गल के सम्बन्ध में कहना चाहिए। 20. सहपरिणते णं भंते ! पुग्गले कालमो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं प्रावलियाए असंखेज्जइभागं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org