________________ 486] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र का स्पर्श, (6) बहुत देशों से सर्व का स्पर्श, (7) सर्व से एकदेश का स्पर्श (8) सर्व से बहुत देशों का स्पर्श और (5) सर्व से सर्व का स्पर्श / देश का अर्थ यहाँ भाग है, और 'सर्व' का अर्थ हैसम्पूर्ण भाग / सर्व से सर्व के स्पर्श की व्याख्या सर्व से सर्व को स्पर्श करने का अर्थ यह नहीं है कि दो परमाणु परस्पर मिलकर एक हो जाते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह है कि दो परमाणु समस्त स्वात्मा द्वारा परस्पर एक दूसरे का स्पर्श करते हैं, क्योंकि दो परमाणुओं में प्राधा आदि विभाग नहीं होते। द्विप्रदेशी और त्रिप्रदेशो स्कन्ध में अन्तर-द्विप्रदेशीस्कन्ध स्वयं अवयवी है, वह किसी का अवयव नहीं है, इसलिए इसमें सर्व से दो (बहुत) देशों का स्पर्श घटित नहीं होता, जबकि त्रिप्रदेशीस्कन्ध में तीन प्रदेशों की अपेक्षा दो प्रदेशों का स्पर्श करते समय एक प्रदेश बाकी रहता है।' द्रव्य-क्षेत्र-भावगत पुद्गलों का काल की अपेक्षा से निरूपरण 14. [1] परमाणुपोग्गले भंते ! कालतो केच्चिरं होति ? गोयमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं / [14-1 प्र.] भगवन् ! परमाणुपुदगल काल की अपेक्षा कब तक रहता है ? [14-1 उ.] गौतम ! परमाणुपुद्गल (परमाणुपुद्गल के रूप में) जघन्य (कम से कम) एक समय तक रहता है, और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) असंख्यकाल तक रहता है / [2] एवं जाव अणंतपदेसिनो। [14-2] इसी प्रकार (द्विप्रदेशीस्कन्ध से लेकर) यावत् अनन्तप्रदेशीस्कन्ध तक कहना चाहिए। 15. [1] एगपदेसोगाढे णं भंते ! पोग्गले सेए तम्मि वा ठाणे अन्नम्मि वा ठाणे कालनो केवचिरं होइ? गोयमा ! जहन्नेणं एग समय, उक्कोसेणं प्रावलियाए असंखेज्जइमागं / [15-1 प्र.] भगवन् ! एक आकाश-प्रदेशावगाढ़ (एक आकाशप्रदेश में स्थित) पुद्गल उस (स्वस्थान में या अन्य स्थान में काल की अपेक्षा से कब तक सकम्प (सेज) रहता है ? [15-1 उ.] गौतम ! (एकप्रदेशावगाढ़ पुद्गल) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट प्रावलिका के असंख्येय भाग तक (उभय स्थानों में) सकम्प रहता है / [2] एवं जाव असंखेज्जपदसोगाढे / [15-2] इसी तरह (द्विप्रदेशावगाढ़ से लेकर) यावत् असंख्येय प्रदेशावगाढ़ तक कहना चाहिए। 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 234 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org