________________ पंचम शतक : उद्देशक-७ ] [ 455 [12-4] जिस प्रकार द्विप्रदेशीस्कन्ध द्वारा त्रिप्रदेशीस्कन्ध के स्पर्श का पालापक कहा गया है, उसी प्रकार द्विप्रदेशीस्कन्ध द्वारा चतुष्प्रदेशीस्कन्ध, पंचप्रदेशीस्कन्ध यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के स्पर्श का पालापक कहना चाहिए। 1.3. [1] तिपदेसिए णं भते ! खंधे परमाणपोग्गलं फुसमाणे पुच्छा। ततिय-छट्ठ-नवमेहि फुसति / [13-1 प्र.] भगवन् ! अब त्रिप्रदेशीस्कन्ध द्वारा परमाणुपुद्गल को स्पर्श करने के सम्बन्ध में पृच्छा है। [13-1 उ.] गौतम ! त्रिप्रदेशीस्कन्ध परमाणपुदगल को तीसरे, छठे और नौवें विकल्प से; (अर्थात्-एकदेश से सर्व को, बहुत देशों से सर्व को और सर्व से सर्व को) स्पर्श करता है। [2] तिपदेसियो टुपदेसियं फुसमाणो पढमएणं ततियएणं चउत्थ-छट्ठ-सत्तम-णवमेहि फुसति / [13-2] त्रिप्रदेशी स्कन्ध, द्विप्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करता हुआ पहले, तीसरे, चौथे, छठे, सातवें और नौवें विकल्प से स्पर्श करता है। [3] तिपदेसिमो तिपदेसियं फुसमाणो सन्वेसु बिठाणेसु फुसति / {13-3] त्रिप्रदेशीस्कन्ध को स्पर्श करता हुमा त्रिप्रदेशीस्कन्ध पूर्वोक्त सभी स्थानों (नौ ही बिकल्पों) से स्पर्श करता है। [4] जहा तिपदेसिपो तिपदेसियं फुसावितो एवं तिपदेसिनो जाव अणंतपएसिएणं संजोएबच्चो। / जिस प्रकार त्रिप्रदेशोस्कन्ध द्वारा त्रिप्रदेशीस्कन्ध को स्पर्श करने के सम्बन्ध में आलापक कहा गया है, उसी प्रकार त्रिप्रदेशोस्कन्ध द्वारा चतुष्प्रदेशी स्कन्ध, यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करने के सम्बन्ध में पालापक कहना चाहिए। तिपदेसियो एवं जाव प्रणंतपएसिश्रो भाणियचो। [13-5] जिस प्रकार त्रिप्रदेशीस्कन्ध के द्वारा स्पर्श के सम्बन्ध में (तेरहवें सूत्र के चार भागों में) कहा गया है, वैसे ही (चतुष्प्रदेशी स्कन्ध से) यावत् (अनन्तप्रदेशीस्कन्ध द्वारा परमाणुपुद्गल से लेकर) अनन्तप्रदेशीस्कन्ध तक को स्पर्श करने के सम्बन्ध में कहना चाहिए। विवेचन-परमाणपुदगल, द्विप्रदेशीस्कन्ध प्रादि को परस्पर स्पर्श-सम्बन्धी प्ररूपणाप्रस्तुत तीन सूत्रों द्वारा परमाणुपुद्गल से लेकर द्विप्रदेशीस्कन्ध, त्रिप्रदेशीस्कन्ध यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध के परस्पर स्पर्श की प्ररूपणा नौ विकल्पों में से अमुक विकल्पों द्वारा की गई है। स्पर्श के नौ विकल्प-(१) एकदेश से एकदेश का स्पर्श, (2) एकदेश से बहत देशों का स्पर्श, (3) एकदेश से सर्व का स्पर्श, (4) बहुत देशों से एक देश का स्पर्श, (5) बहुत देशों से बहुत देशों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org