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________________ पंचम शतक : उद्देशक-७] [483 विवेचन–परमाणुपुदगल से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक के सार्ध, समध्य प्रादि एवं तद्विपरीत होने के विषय में प्रश्नोत्तर-प्रस्तुत सूत्रद्वय में परमाणुपुद्गल आदि के सार्थ आदि होने, न होने के विषय में प्रश्नोत्तर अंकित हैं। फलित निष्कर्ष-परमाणु पुद्गल अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश, होते हैं / परन्तु जो द्विप्रदेशी जैसे समसंख्या (दो, चार, छह, आठ आदि संख्या) वाले स्कन्ध होते हैं, वे सार्थ, अमध्य और सप्रदेश होते हैं, जबकि जो त्रिप्रदेशी जैसे विषम (तीन-पांच, सात, नौ आदि एकी) संख्या वाले स्कन्ध होते हैं वे अनर्ध, समध्य और सप्रदेश होते हैं / इसी प्रकार संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी स्कन्धों में जो समसंख्यकप्रदेशी होते हैं, वे सार्ध, अमध्य और सप्रदेशी होते हैं, और जो विषमसंख्यक-प्रदेशी होते हैं, वे अनर्द्ध, समध्य और सप्रदेश होते हैं / सार्ध, समध्य, सप्रदेश, अनर्द्ध, अमध्य और प्रप्रदेश-सअड्डे - सार्ध, जिसका बराबर प्राधा भाग हो सके, समझे मध्यसहित-जिसका मध्य भाग हो, सष्पदेसे = जो स्कन्ध प्रदेशयुक्त होता है। प्रणद्ध = जो स्कन्ध अर्धरहित (अनर्द्ध) होता है, अमझे = जिस स्कन्ध के मध्य नहीं होता, और अप्रदेश-प्रदेशरहित / ' परमाणुपुद्गल-द्विप्रदेशी आदि स्कन्धों की परस्पर स्पर्शप्ररूपरणा 11. [1] परमाणुपोग्गले णं भाते ! परमाणुपोग्गलं फुसमाणे कि देसेणं वेसं फुसति 1? देसेणं देसे फुसति 2? देसेणं सव्वं फुसति 3 ? देसेहि देसं फुसति 4 ? देसेहि वेसे फुसति 5 ? सेहि सव्वं फुसति 6 ? सम्वेणं देसं फुसति 7 ? सम्वेणं देसे फुसति 8 ? सव्वेणं सव्वं फुसति है ? गोयमा ! नो देसेणं देसं फुसति, नो देसणं देसे फुसति, नो देसेणं सब्बं फुसति, णो देसेहि देसं फुसति, नो देसेहिं देसे फुसति, नो देसेहि सव्वं फुसति, पो सम्बेणं देसं फुसति, णो सम्वेणं देसे फुसति, सम्वेणं सव्वं फुसति / [11-1 प्र.] भगवन् ! परमाणुपुद्गल, परमाणुपुद्गल को स्पर्श करता हुअा १-क्या एकदेश से एकदेश को स्पर्श करता है ?, २-एकदेश से बहुत देशों को स्पर्श करता है ?, 3. अथवा एकदेश से सबको स्पर्श करता है ?, 4. अथवा बहुत देशों से एकदेश को स्पर्श करता है ?, 5. या बहुत देशों से बहुत देशों को स्पर्श करता है ?, 6. अथवा बहुत देशों से सभी को स्पर्श करता है ?, 7. अथवा सर्व से एकदेश को स्पर्श करता है ?, 8. या सर्व से बहुत देशों को स्पर्श करता है ?, अथवा 6. सर्व से सर्व को स्पर्श करता है ? 11-1 उ.] गौतम ! (परमाणुपुद्गल परमाणपुद्गल को) 1. एकदेश से एकदेश को स्पर्श नहीं करता, 2. एकदेश से बहुत देशों को स्पर्श नहीं करता, 3. एकदेश से सर्व को स्पर्श नहीं करता, 4. बहुत देशों से एकदेश को स्पर्श नहीं करता, 5. बहुत देशों से बहुत देशों को स्पर्श नहीं करता, 6. बहुत देशों से सभी को स्पर्श नहीं करता, 7. न सर्व से एकदेश को स्पर्श करता है, 8. न सर्व से बहुत देशों को स्पर्श करता है, अपितु 6. सर्व से सर्व को स्पर्श करता है / 1. भगवती सूत्र. वत्ति, पत्रांक 233 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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