________________ 482] [ पंचम शतक : उद्देशक-७ [6 उ.] गौतम ! (परमाणुपुद्गल) अनार्द्ध, अमध्य और अप्रदेश है, किन्तु, सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश नहीं है। 10. [1] दुपदेसिए णं भंते ! खंधे कि सम्रद्ध समझे सपदेसे ? उदाह प्रणद्धे प्रमझे प्रपदेसे? गोयमा ! सश्रद्ध अमझे, सपदेसे, जो अणद्ध णो समझे जो अपदेसे / [10-1 प्र.) भगवन् ! क्या द्विप्रदेशिक स्कन्ध साधं, समध्य और सप्रदेश है, अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश है ? [10-1 उ.] गौतम ! द्विप्रदेशी स्कन्ध सार्ध, अमध्य और सप्रदेश है, किन्तु अनर्ध, समध्य और अप्रदेश नहीं है। [2] तिपदेसिए ण भते ! खंधे 0 पुच्छा। गोयमा ! अणद्ध समझे सपदेसे, नो सप्र णो अमज्झे णो अपदेसे / {10.2 प्र.] भगवन् ! क्या त्रिप्रदेशी स्कन्ध सार्ध, अमध्य और सप्रदेश है, अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश है। [10-2 उ.] गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध अनर्थ है, समध्य है और सप्रदेश है; किन्तु सार्ध नहीं है, अमध्य नहीं है, और अप्रदेश नहीं है। [3] जहा दुपदेसिनो तहा जे समाते भाणियन्वा। जे विसमा ते जहा तिपएसिश्रो तहा भाणियव्वा / [10-3] जिस प्रकार द्विप्रदेशी स्कन्ध के विषय में सार्ध आदि विभाग बतलाए गए हैं, उसी प्रकार समसंख्या (बेकी की संख्या) वाले स्कन्धों के विषय में कहना चाहिए। तथा विषमसंख्या एकी--एक की संख्या) वाले स्कन्धों के विषय में त्रिप्रदेशी स्कन्ध के विषय में कहे गए अनुसार कहना चाहिए। [4] संखेज्जपदेसिए गं भते ! खंधे कि सगड्ढे 6, पुच्छा? गोयमा ! सिय सप्रद्ध अमाझे सपदेसे, सिय अणड्ढे समझे सपदेसे / [10-4 प्र.] भगवन् ! क्या संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध सार्ध, समध्य और सप्रदेश है, अथवा अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश है ? - [10-4 उ.] गौतम ! वह कदाचित् सार्ध होता है, अमध्य होता है, और सप्रदेश होता है, और कदाचित् अनर्थ होता है, समय होता है और सप्रदेश होता है / [5] जहा संखेज्जपदेसिम्रो तहा असंखेज्जपदेसिनो वि अणंतपदेसिनो वि / [10-5] जिस प्रकार संख्यातप्रदेशी स्कन्ध के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध और अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी जान लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org