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________________ पंचम शतक : उद्देशक-६ ] [471 12. अहे णं से उसू अप्पणो गल्यत्ताए भारियत्ताए गुरुसंभारियत्ताए अहे वोससाए पच्चोवयमाणे जाई तत्थ पाणाई जाव' जीवितातो ववरोवेति, एवं च णं से पुरिसे कतिकिरिए ? गोयमा ! जावं च णं से उसू अप्पणो गल्ययाए जाव' ववरोवेति तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव चहि किरियाहिं पुढे / नेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहि घणू निव्यत्तिए ते वि जीवा चहि किरियाहि / धणुपुढे चउहिं / जीवा चउहि / हारू चहिं / उसू पंचहिं / सरे, पत्तणे, फले, हारू पंचहि / जे वि य से जीवा अहे पच्चोक्यमाणस्स उवग्गहे चिट्ठति ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पंर्चाह किरियाहि पुट्ठा / [12 प्र.] 'हे भगवन् ! जब वह बाण अपनी गुरुता से, अपने भारीपन से, अपने गुरुसंभारता से स्वाभाविकरूप (विस्रसा प्रयोग) से नीचे गिर रहा हो, तब (ऊपर से नीचे गिरता हुआ) वह (बाण) (बीच मार्ग में) प्राण, भूत, जीव और सत्त्व को यावत् जीवन (जीवित) से रहित कर देता है, तब उस बाण फैकने वाले पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? [12 उ.] गौतम ! जब वह बाण अपनी गुरुता आदि से नीचे गिरता हुआ, यावत् जीवों को जीवन रहित कर देता है, तब वह बाग फैंकने वाला) पुरुष कायिकी आदि चार क्रियाओं से स्पष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से धनुष बना है, वे जीव भी चार क्रियाओं से, धनुष की पीठ चार क्रियाओं से, जीवा (ज्या = डोरी) चार क्रियाओं से, हारू चार क्रियाओं से, बाण पांच क्रियानों से, तथा शर, पत्र, फल और पहारू पांच क्रियाओं से स्पष्ट होते हैं / 'नीचे गिरते हुए बाण के अवग्रह में जो जीव आते हैं, वे जीव भी कायिको आदि पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। विवेचन–धनुष चलाने वाले व्यक्ति को तथा धनुष से सम्बन्धित जीवों को उनसे लगने वाली क्रियाएँ-प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. 10 से 12 तक) में धनुष चलाने वाले व्यक्ति को तथा धनुष के विविध उपकरण (अवयव) जिन-जिन जीवों के शरीरों से बने हैं उनको बाण छटते समय तथा बाण के नीचे गिरते समय होने वाली प्राणि-हिंसा से लगने वाली क्रियाओं का निरूपण किया गया है। किसको, क्यों, कैसे और कितनी क्रियाएँ लगती है ? ---एक व्यक्ति धनुष हाथों में लेता है, फिर वाण उठाता है, उसे धनुष पर चढ़ा कर विशेष प्रकार के आसन से बैठता है, फिर कान तक बाण को खींचता और छोड़ता है। छटा हुआ वह बाण आकाशस्थ या उसकी चपेट में पाए हुए प्राणी के प्राणों का विविध प्रकार से उत्पीडन एवं हनन करता है, ऐसी स्थिति में उस पुरुष को धन में लेने से छोड़ने तक में कायिकी से लेकर प्राणातिपातिकी तक पांचों क्रियाएँ लगती हैं। इसी प्रकार जिन जीवों के शरीर से धनुष, धनुःपृष्ठ, डोरी, हारू, बाण, शर, पत्र, फल और हारू आदि धनुष एवं धनुष के उपकरण बने हैं उन जीवों को भी पांच क्रियाएँ लगती हैं। यद्यपि वे इस समय अचेतन हैं तथापि उन जीवों ने मरते समय अपने शरीर का व्युत्सर्ग नहीं किया था, वे अविरति के परिणाम 1. 'जाव' पद यहाँ निम्नोक्त पाठ का सूचक है-- 'भूयाई जीवाई सत्ताई अभिहणति वत्त ति लेस्सेति संघाएति संघति परितावेति किलामेति ठाणाओ ठाणं संकामेति'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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