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________________ 470] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र धनुष चलाने वाले व्यक्ति को तथा धनुष से सम्बन्धित जीवों को उनसे लगने वाली क्रियाएँ 10. [1] पुरिसे णं भते ! धणु परामसति, धणु परामुसित्ता उसु परामुसति, उसु परामुसित्ता ठाणं ठाति, ठाणं ठिच्चा पायतकण्णाययं उसुकरेति, प्राययकण्णाययं उसुकरेत्ता उड्ढे वेहासं उसु उम्विहति, 2 ततो णं से उसु उड्ढं वेहासं उविहिए समाणे जाई तत्थ पाणाई भूयाई जोवाइं सत्ताई अभिहणति वत्तेति लेस्सेति संधाएति संघट्टेति परितावेति किलामेति, ठाणाओ ठाणं संकामेति, जीवितातो ववरोबेति, तए णं भले ! से पुरिसे कतिकिरिए ? ___गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे धणु परामसति जाव उम्विहति तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणातिवातकिरियाए, पंचहि किरियाहि पुट्ट / 110-1 प्र] भगवन् ! कोई पुरुष धनुष को स्पर्श करता है, धनुष का स्पर्श करके वह बाण का स्पर्श (ग्रहण) करता है, बाण का स्पर्श करके (धनुष से बाण फेंकने के) स्थान पर से पासनपूर्वक बैठता है, उस स्थिति में बैठकर फेंके जाने वाले बाण को कान तक आयत करे---खींचे, खींच कर ऊँचे आकाश में बाण फैकता है। ऊँचे आकाश में फेंका हुआ वह बाण, वहाँ आकाश में जिन प्राण, भूत, जीव, और सत्त्व को सामने आते हुए मारे (हनन करे) उन्हें सिकोड़ दे, अथवा उन्हें ढक दे, उन्हें परस्पर श्लिष्ट कर (चिपका) दे, उन्हें परस्पर संहत (संघात = एकत्रित) करे, उनका संघट्टा-जोर से स्पर्श करे, उनको परिताप-संताप (पीड़ा) दे, उन्हें क्लान्त करे-थकाए, हैरान करे, एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकाए, एवं उन्हें जीवन से रहित कर दे, तो हे भगवन् ! उस पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? [10-1 उ.] गौतम ! यावत् वह पुरुष धनुष को ग्रहण करता यावत् बाण को फेंकता है, तावत् वह पुरुष कायिकी, प्राधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी, और प्राणातिपातिकी, इन पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है / [2] जेसि पि य णं जीवाणं सरोरेहितो धणू निवत्तिए ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे / [10-2] जिन जीवों के शरीरों से वह धनुष बना (निष्पन्न हुआ) है, वे जीव भी पांच क्रियानों से स्पृष्ट होते हैं। 11. एवं धणुपुढे पंचहि किरियाहिं / जीवा पंचर्चाह / हारू पंचहिं / उसू पंहिं / सरे पत्तणे फले हारू पंचहिं। [11] इसी प्रकार धनुष की पीठ भी पांच क्रियानों से स्पृष्ट होती है / जीवा (डोरी) पांच क्रियाओं से, हारू (स्नायु) पाँच क्रियाओं से एवं बाण पांच क्रियाओं से तथा शर, पत्र, फल और छहारू भी पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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