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________________ 444 ] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र दो देवा महिड्डिया जाष पादुम्मूता, तए णं अम्हे समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो, 2 मणसा चेव इमाई एतारूवाई वागरणाई पुच्छामो-कति गंमते! देवाणुपियाणं अंतेवासिसयाई सिज्झिहिति जाव अंतं करेहिति ? तए णं समणे भगवं महावीरे अम्हेहि मणसा पुढे अम्ह मणसा चेव इमं एतारूवं वागरणं वागरेति-एवं खलु देवाणुप्पिया! मम सत्त अंतेवासि० जाव अंतं करेहिति / तए णं अम्हे समणेणं भगवया महावीरेणं मणसा पुढणं मणसा चेव इमं एतास्वं वागरणं वागरिया समाणा समणं भगवं महावीरं वंदामो नमसामो, 2 जाव पज्जुवासामो त्ति कटु भगवं गोतमं बंदंति नमंति, 2 जामेव दिसि पाउन्मूता तामेव दिसि पडिगया / [16-5] इधर उन देवों ने भगवान् गौतम स्वामी को अपनी ओर आते देखा तो वे अत्यन्त हर्षित हुए यावत् , उनका हृदय प्रफुल्लित हो गया; वे शीघ्र ही खड़े हुए, फुर्ती से उनके सामने गए और जहाँ गौतम स्वामी थे, वहाँ उनके पास पहुँचे / फिर उन्हें यावत् वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार बोले-'भगवन् ! महाशुक्रकल्प (सप्तम देवलोक) से, महासामान (महासर्ग या महास्वर्ग) नामक महाविमान से हम दोनों महद्धिक यावत् महानुभाग देव यहाँ आये हैं। यहाँ पा कर हमने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार किया और मन से ही (मन ही मन) इस प्रकार की ये बातें पूछों कि 'भगवन् ! आप देवानुप्रिय के कितने शिष्य सिद्ध होंगे यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेंगे ?' तब हमारे द्वारा मन से ही श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से (यह प्रश्न) पुछे जाने पर उन्होंने हमें मन से ही इस प्रकार का यह उत्तर दिया--'हे देवानुप्रियो ! मेरे सात सौ शिष्य सिद्ध होंगे, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेंगे।' 'इस प्रकार मन से पूछे गए प्रश्न का उत्तर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा मन से ही प्राप्त करके हम अत्यन्त हृष्ट और सन्तुष्ट हुए यावत् हमारा हृदय उनके प्रति खिच गया / अतएव हम श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को बन्दन-नमस्कार करके यावत् उनकी पर्यपासना कर रहे हैं।' यों कह कर उन देवों ने भगवान् गौतम स्वामी को वन्दन-नमस्कार किया और वे दोनों देव जिस दिशा से आए (प्रादुर्भूत हुए) थे, उसी दिशा में वापस लौट गए। विवेचन-दो देवों के मनोगत प्रश्न के भगवान् द्वारा प्रदत्त मनोगत उत्तर पर गौतम स्वामी का मनःसमाधान-प्रस्तुत दो सूत्रों द्वारा शास्त्रकार वे सात तथ्यों का स्पष्टीकरण किया है (1) दो देवों का अपना जिज्ञासा शान्त करने हेतु भगवान् महावीर की सेवा में आगमन / (2) सिद्ध-मुक्त होने वाले भगवान् के शिष्यों के सम्बन्ध में देवों द्वारा प्रस्तुत मनोगत प्रश्न / (3) उनका मनोगत प्रश्न जान कर भगवान् द्वारा मन से ही प्रदत उत्तर—'मेरे सात सौ शिष्य सिद्ध होंगे।' (4) यथार्थ उत्तर पा कर देव हृष्ट और सन्तुष्ट होकर वन्दन नमस्कार करके पर्युपासना में लीन हुए। (5) गौतम स्वामी के ध्यानपरायण मन में देवों के सम्बन्ध में उठी हुई जिज्ञासा शान्त करने का विचार / (6) भगवान् द्वारा गौतमस्वामी को अपनी जिज्ञासा शान्त करने हेतु देवों के पास जाने का परामर्श Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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