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________________ 438 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र निकाल कर दूसरी स्त्री के) गर्भाशय में रखता है ? या फिर योनि द्वारा गर्भ को पेट में से बाहर निकाल कर (वापस उसी तरह) योनि द्वारा ही (दूसरी स्त्री के पेट में) रखता है ? [15 उ.] हे गौतम ! वह हरिनगमेषी देव, एक गर्भाशय से गर्भ को उठा कर दूसरे गर्भाशय में नहीं रखता; गर्भाशय से गर्भ को लेकर उसे योनि द्वारा दूसरी स्त्री के उदर में नहीं रखता; तथा योनि द्वारा गर्भ को (पेट में से) बाहर निकालकर (वापस उसी तरह) योनि द्वारा दूसरी स्त्री के पेट में नहीं रखता; परन्तु अपने हाथ से गर्भ को स्पर्श कर करके, उस गर्भ को कुछ पीड़ा (बाधा) न हो, इस तरीके से उसे योनि द्वारा बाहर निकाल कर दूसरी स्त्री के गर्भाशय में रख देता है। 16. पभू णं भते! हरिणेगमेसो सक्कस्स दूते इत्थोगभ नहसिरंसि वा रोमकसि वा साहरित्तए वा नोहरित्तए वा ? ___ हता, पभू, नो चेव णं तस्स गम्भस्स किचि वि प्राबाहं वा विवाहं वा उप्याएज्जा, छविच्छेद पुण करेज्जा, एसुहमं च गं साहरिज्ज वा, नीहरिज्ज वा / [16 प्र.] भगवन् ! क्या शक्र का दूत हरिनैगमेषी देव, स्त्री के गर्भ को नखाग्र (नख के सिरे) द्वारा, अथवा रोमकूप (छिद्र) द्वारा गर्भाशय में रखने या गर्भाशय से निकालने से समर्थ है ? [16 उ.] हाँ, गौतम ! हरिनैगमेषी देव उपर्युक्त रीति से कार्य करने में समर्थ है। (किन्तु ऐसा करते हुए) वह देव उस गर्भ को थोड़ी या बहुत, किञ्चित्मात्र भी पीड़ा नहीं पहुँचाता / हाँ, वह उस गर्भ का छविच्छेद (शरीर का छेदन-भेदन) करता है, और फिर उसे बहुत सूक्ष्म करके अंदर रखता है, अथवा इसी तरह अंदर से बाहर निकालता है / विवेचन-हरिनैगमेषी देव द्वारा गर्भापहरण किये जाने के सम्बन्ध में शंका-समाधानसुत्रद्वय (स.१५और 16) में शक्रेन्द्र के दत एवं गर्भापहारक हरिनैगमेषी देव द्वारा गर्भापहरण कैसे. किस तरीके से किया जाता है ? तथा क्या वह नखान और रोमकूप द्वारा गर्भ को गर्भाशय में रखने या उससे निकालने में समर्थ है ? इन दो शंकाओं को प्रस्तुत करके भगवान् द्वारा दिया गया उनका सुन्दर एवं सन्तोषजनक समाधान अंकित किया गया है। हरिनगमेषो देव का संक्षिप्त परिचय–'हरि', इन्द्र को कहते हैं तथा इन्द्र से सम्बन्धित व्यक्ति को भी हरि कहते हैं। इसलिए हरिनैगमेषी का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ (निर्वचन) इस प्रकार किया गया है हरि - इन्द्र के, नैगम = आदेश को जो चाहता है, वह हरिनैगमेषो, अथवा हरि = इन्द्र का नैगमेषी नामक देव / शकेन्द्र की पदाति (पैदल) सेना का वह नायक तथा शदूत है / शक्रेन्द्र की प्रा ने भगवान महावीर की माता त्रिशलादेवी के गर्भ में देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ से भगवान् महावीर के गर्भ को संहरण करके स्थापित किया था / यद्यपि यहाँ भगवान् महावीर का नाम मुलपाठ में नहीं दिया है, तथापि हरिनैगमेषी का नाम पाने से यह घटना भ० महावीर से सम्बन्धित होने की संभावना है। वृत्तिकार का कथन है कि अगर इस घटना को भ० महावीर के साथ घटित करना न होता तो 'हरिनैगमेषी' नाम मूलपाठ में न देकर सामान्यरूप से देव का निरूपण किया जाता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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