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________________ पंचम शतक : उद्देशक-४] [437 [11] जिस प्रकार हंसने (और उत्सुक होने) के सम्बन्ध में (छद्मस्थ और केवली मनुष्य के विषय में) प्रश्नोत्तर बतलाए गए हैं, उसी प्रकार निद्रा और प्रचला-निद्रा के सम्बन्ध में (छद्मस्थ और केवली मनुष्य के विषय में) प्रश्नोत्तर जान लेने चाहिए। विशेष यह है कि छद्मस्थ मनुष्य दर्शनावरणीय कर्म के उदय से निद्रा अथवा प्रचला लेता है, जबकि केवली भगवान के वह दर्शनावरणीय कर्म नहीं है; (उनके दर्शनावरणीय कर्म का सर्वथा क्षय हो चुका है / ) इसलिए केवली न तो निद्रा लेता है, न ही प्रचलानिद्रा लेता है। शेष सब पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। 12. जीवे णं भंते ! निदायमाणे वा पयलायमाणे वा कति कम्मपगडीयो बंधति ? गोयमा ! सतविहबंधए वा अटविहबंधए वा / / [12 प्र.] भगवन् ! निद्रा लेता हुअा अथवा प्रचलानिद्रा लेता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों (कितने प्रकार के कर्मों) को बांधता है ? [12 उ.] गौतम ! निद्रा अथवा प्रचला-निद्रा लेता हुआ जीव सात कर्मों की प्रकृतियों का बन्ध करता है, अथवा पाठ कर्मों की प्रकृतियों का बन्ध करता है। 13. एवं जाव वेमाणिए। [13] इसी तरह (एकवचन की अपेक्षा से) [नैरयिक से लेकर] वैमानिक-पर्यन्त (चौबीस ही दण्डकों के लिए) कहना चाहिए / 14. पोहत्तिएसु जीवेगिदियवज्जो तियभंगो।' [14] जब उपर्युक्त प्रश्न बहुवचन (बहुत-से जीवों) को अपेक्षा से पूछा जाए, तब (समुच्चय) जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर [शेष 16 दण्डकों में कर्मबन्ध-सम्बन्धी तीन भंग कहने चाहिए। विवेचन-छमस्थ और केवली का निद्रा और प्रचला से सम्बन्धित प्ररूपण-प्रस्तुत चार सूत्रों में हास्य और औत्सुक्य के सूत्रों की तरह ही सारा निरूपण है / अन्तर केवल इतना ही है कि यहाँ हास्य और औत्सुक्य के बदले निद्रा और प्रचला शब्द प्रयुक्त हुए हैं। शेष सब पूर्ववत् है / हरिनैगमेषी द्वारा गर्भापहरण किये जाने के सम्बन्ध में शंका-समाधान 15. हरी णं भते ! नेगमेसी सक्कदते इत्थीगम्भं साहरमाणे कि गम्भारो गम्भं साहरति ! गब्भाप्रो जोणि साहरइ ? जोणीतो गब्भं साहरति ? जोणीतो जोणि साहरइ ? गोयमा ! नो गम्भातो गभं साहरति, नो गम्भानो जोणि साहरति, नो जोणीतो जोणि साहरति. परामसिय परामसिय प्रवाबाहेणं अब्बाबाहं जोणीयो गम्भं साहरइ / [15 प्र.] भगवन् ! इन्द्र (हरि)-सम्बन्धी शक्रदूत हरिनैगमेषी देव जब स्त्री के गर्भ का संहरण करता है, तब क्या वह एक गर्भाशय से गर्भ को उठाकर दूसरे गर्भाशय में रखता है ? या गर्भ को लेकर योनि द्वारा दूसरी (स्त्री) के उदर में रखता है ? अथवा योनि से (गर्भ को बाहर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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