________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ___E. पोहत्तिएहि जोवेगिदियवज्जो तियभंगो / [6] जब उपर्युक्त प्रश्न बहुत जीवों को अपेक्षा पूछा जाए, तो उसके उत्तर में समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर कर्मबन्ध से सम्बन्धित तीन भंग (विकल्प) कहने चाहिए। विवेचन----छद्मस्थ और केवली के हास्य और प्रौत्सुक्य—प्रस्तुत 5 सूत्रों (सू. 5 से 1 तक) में छदमस्थ और केवलज्ञानी मनुष्य के हंसने और उत्सुक (किसी वस्तु को लेने के लिए उतावला) होने के सम्बन्ध में पांच तथ्यों का निरूपण किया गया है 1. छद्मस्थ मनुष्य हंसता भी है और उत्सुक भी होता है / 2. केवली मनुष्य न हंसता है, और न उत्सुक होता है / 3. क्योंकि केवली के चारित्रमोहनीय कर्म का उदय नहीं होता, वह क्षीण हो चका है। 4. जीव (एक जीव) हंसता और उत्सुक होता है, तब सात या आठ प्रकार के कर्म बांध लेता है। 5. यह बात नैरयिक से लेकर वैमानिक तक चौबीस ही दण्डकों पर घटित होती है / 6. जब बहुवचन (बहुत-से जीवों) की अपेक्षा से कहा जाए, तब समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर शेष 19 दण्डकों में कर्मबन्ध सम्बन्धी तीन भंग कहने चाहिए। तीन भंग-पृथक्त्वसूत्रों (पोहत्तिएहि) अर्थात् बहुवचन-सूत्रों (बहुत-से जीवों) की अपेक्षा से पांच एकेन्द्रियों में हास्यादि न होने से 5 स्थावरों के 5 दण्डकों को छोड़कर शेष 16 दण्डकों में कर्मबन्धसम्बन्धी तीन भंग होते हैं-(१) सभी जीव सात प्रकार के कर्म बांधते हैं, (2) बहुत-से जीव 7 प्रकार के कर्म बांधते हैं और एक जीव 8 प्रकार के कर्म बांधता है, (3) बहुत-से जीव 7 प्रकार के कर्मों को और बहुत-से जीव 8 प्रकार के कर्मों को बांधते हैं।' ___आयुकर्म के बन्ध के समय पाठ और जब आयुकर्म न बंध रहा हो, तब सात कर्मों का बन्ध समझना चाहिए। छद्मस्थ और केवली का निद्रा और प्रचला से सम्बन्धित प्ररूपरण 10. छउमत्थे णं भंते ! मणूसे निदाएज्ज वा? पयलाएज्ज वा ? हंता, निदाएज्ज वा, पयलाएज्ज वा। [10 प्र.] भगवन् ! क्या छद् मस्थ मनुष्य निद्रा लेता है अथवा प्रचला नामक निद्रा लेता है ? [10 उ.] हाँ, गौतम ! छद्मस्थ मनुष्य निद्रा लेता है और प्रचला निद्रा (खड़ा खड़ा नींद) भी लेता है। 11. जहा हसेज्ज वा तहा, नवरं दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं निदायंति वा, पयलायति वा / से णं केवलिस्स नस्थि / अन्नं तं चेव / 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 217 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org