________________ पंचम शतक : उद्देशक-४] [435 [5 प्र.] भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य हंसता है तथा (किसी पदार्थ को ग्रहण करने के लिए) उत्सुक (उतावला) होता है ? [5 उ.] गौतम ! हाँ, छद्मस्थ मनुष्य हंसता तथा उत्सुक होता है। 6. [1] जहा णं भंते ! छउमत्थे मणुस्से हसेज्ज वा उस्सु० तहा णं केवली वि हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा? गोयमा ! नो इण? सम8 / [6-1 प्र.] भगवन् ! जैसे छद्मस्थ मनुष्य हंसता है तथा उत्सुक होता है, वैसे क्या केवली भी हंसता और उत्सुक होता है ? [6.1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अर्थात् छद्मस्थ मनुष्य को तरह केवली न तो हंसता है और न उत्सुक होता है।) [2] से केण?णं भंते ! जाव नो णं तहा केवली हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा? गोयमा ! जं णं जीवा चरित्तमोहणिज्जकम्मस्त उदएणं हसंति वा उस्सुयायति वा, से णं केवलिस्स नथि, से तेणटुणं जाव नो णं तहा केवली हसेज्ज वा, उस्तुयाएज्ज वा / [6-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि केवली मनुष्य (छद्भस्थ को तरह) न तो हंसता है और न उत्सुक होता है ? [6-2 उ.] गौतम ! जीव, चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से हंसते हैं या उत्सुक होते हैं, किन्तु वह (चारित्रमोहनीय कर्म) केवलोभगवान् के नहीं है; (उनके चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय हो चुका है।) इस कारण से यह कहा जाता है कि जैसे छद्मस्थ मनुष्य हंसता है अथवा उत्सुक होता है, वैसे केवलीमनुष्य न तो हंसता है और न ही उत्सुक होता है / 7. जीवे गं भंते ! हसमाणे वा उस्सुयमाणे वा कति कम्मपगडीमो बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अविहबंधए वा / [7 प्र.] भगवन् ! हंसता हुया या उत्सुक होता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों (कितने प्रकार के कर्म) को बांधता है ? [7 उ.] गौतम ! (हंसता हुआ या उत्सुक होता हुआ जीव) सात प्रकार के कर्मों को बांधता है, अथवा आठ प्रकार के कर्मों को बांधता है / 8. एवं जाव' वेमाणिए / [8] इसी प्रकार (नैरयिक से लेकर) वैमानिकपर्यन्त चौबीस ही दण्डकों के लिए (ऐसा आलापक) कहना चाहिए / 1. 'जाब' पद यहाँ नैरयिक से लेकर वैमानिक पर्यन्त चौबीस दण्डकों का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org