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________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सेव भते ! सेवं भते ! त्ति भगवं जाव विहरति / // पंचम सए : बिइश्रो उद्देसनो समतो॥ [18 प्र.] भगवन् ! लवणसमुद्र का चऋवाल-विष्कम्भ (सब तरफ़ की चौड़ाई) कितना कहा गया है ? [18 उ.] गौतम ! (लवणसमुद्र के सम्बन्ध में सारा वर्णन) पहले कहे अनुसार जान लेना चाहिए, यावत् लोकस्थिति लोकानुभाव तक (जीवाभिगमोक्त सूत्रपाठ) कहना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कह कर भगवान् गौतम स्वामी...... यावत् विचरण करने लगे। विवेचन-लवणसमुद्र की चौड़ाई आदि के सम्बन्ध में प्रतिदेशपूर्वक निरूपण-प्रस्तुत सूत्र में जीवाभिगमोक्त सूत्रपाठ का लोकस्थिति-लोकानुभाव-पर्यन्त अतिदेश करके लवणसमुद्र सम्बन्धी निरूपण किया गया है।। जीवाभिगम में लवणसमुद्र-सम्बन्धी वर्णनः संक्षेप में-लवणसमुद्र का संस्थान गोतीर्थ, नौका, सोप-सम्पुट, अश्वस्कन्ध, और वलभी के जैसा, गोल चूड़ी के आकार का है। उसका चक्रवाल लाख योजन का है / तथा 1581136 से कुछ अधिक उसका परिक्षेप (घेरा) है। उसका उद्वेध (ऊँचाई-गहराई) 1 हजार योजन है। इसकी ऊँचाई 16 हजार योजन, सर्वाग्र 17 हजार योजन का है। इतना विस्तृत और विशाल लवण समुद्र से अब तक जम्बूद्वीप क्यों नहीं डूबा, इसका कारण है-भारत और ऐरवत क्षेत्रों में स्वभाव से भद्र, विनीत, उपशान्त, मन्दकषाय, सरल, कोमल, जितेन्द्रिय, भद्र और नम्र अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, चारण, विद्याधर, श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविका एवं धर्मात्मा मनुष्य हैं, उनके प्रभाव से लवणसमुद्र जम्बूद्वीप को डुबाता नहीं है, यावत् जलमय नहीं करता यावत् इस प्रकार का लोक का स्वभाव भी है, यहाँ तक कहना चाहिए।' / / पंचम शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त // 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक 214 (ख) जीवाभिगम सूत्र प्रतिपत्ति 3, उद्देशक 2, सूत्र 173, लवणसमुद्राधिकार पृ-३२४-२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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