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________________ 424 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आदि हो जाने तथा इनके रंगरूप, आकर-रस आदि के बदल जाने से इन्हें भूतपूर्व अग्निकाय के शरीर कहा जा सकता है।' लोह आदि के शरीर का उनको पूर्वावस्था वौर पश्चादवस्था को दृष्टि से निरूपण 15. अह णं भंते ! प्रये तंबे तउए सीसए उवले कट्टिया, एए णं किसरोरा इ वतव्वं सिया? गोयमा ! अए तंबे तउए सोसए उवले कसट्टिया, एए णं पुथ्वभावपण्णवणं पड़च्च पुढविजीवसरीरा, तो पच्छा सत्थातीता जाव अगणिजीवसरोरा ति वत्तन्वं सिया। 15. प्र.। भगवन् ! प्रश्न है लोहा, तांबा, त्रपुष (कलाई या रांगा), शोशा, उपल (जला हुआ पत्थर-कोयला) और कसट्टिका (लोहे का काट–मैल), ये सब द्रव्य किन (जीवों के) शरीर कहलाते हैं ? [15 उ.] गौतम ! लोहा, तांबा, कलई, शीशा, कोयला और लोहे का काट; ये सब द्रव्य पूर्वप्रज्ञापना की अपेक्षा से पृथ्वीकायिक जीवों के शरीर कहे जा सकते हैं, और उसके बाद शस्त्रातीत यावत् शस्त्र-परिणामित होने पर ये अग्नि कायिक जीवों के शरीर कहे जा सकते हैं। अस्थि प्रादि तथा अंगार प्रादि के शरीर का उनकी पूर्वावस्था एवं पश्चादवस्था की अपेक्षा से प्ररूपण 16. ग्रह भंते ! अट्ठी पट्टिन्झामे, चम्मे चम्मज्झामें, रोमे रोमज्झामे, सिंगे सिंगझामे, खुरे खुरज्झामे, नखे नखज्झामे, एते णं किसरीरा ति वत्तव्वं सिया? गोयमा ! अट्ठी चम्मे रोमे सिगे खुरे नहे, एए णं तसपाणजीवसरीरा। अद्विज्झामे चम्मझामे रोमज्झामे सिगल्झामे खुरज्झामे पहज्झामे, एए णं पुन्वभावपण्णवणं पडुच्च तसपाणजीवसरोरा, ततो पच्छा सत्यातीता जाव अगणि० जाव सिया। 16 प्र.] भगवन् ! और ये हड्डी, अस्थिध्याम (अग्नि से दूसरे स्वरूप पर्यायान्तर को प्राप्त हड्डी और उसका जला हुया भाग), चमड़ा, चमड़े का जला हुया स्वरूपान्तरप्राप्त भाग, रोम, अग्निज्वलित रोम, सींग, अग्नि प्रज्वलित विकृत सींग, खुर, अग्निप्रज्वलित खुर, नख और अग्निप्रज्वलित नख, ये सब किन (जीवों) के शरीर कहे जा सकते हैं ? [16 उ.] गौतम ! अस्थि (हड्डी), चमड़ा, रोम, सींग, खुर, और नख ये सब वसजीवों के शरीर कहे जा सकते हैं, और जली हुई हड्डी, प्रज्वलित विकृत चमड़ा, जले हुए रोम, प्रज्वलितरूपान्तरप्राप्त सींग, प्रज्वलित खुर और प्रज्वलित नख; ये सब पूर्वभावप्रज्ञापना की अपेक्षा से तो त्रसजीवों के शरीर ; किन्तु उसके पश्चात् शस्त्रातीत यावत् अग्निपरिणामित होने पर ये अग्निकायिक जीवों के शरीर कहे जा सकते हैं / 1. भगवतीसूत्र न. वृत्ति, पत्रांक 213 2. 'कसटिका' का अर्थ भगवती, अवचणि में कसपद्रिका = कसौटी भी किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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