SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम शतक : उद्देशक-२] [423 कठिन शब्दों के विशेष प्रर्थ-दीविच्चगा' -द्वीपसम्बन्धी, 'सामना' = सामुद्रिक-समुद्र सम्बन्धी / वायंति = बहती हैं-चलती हैं। अहारियं रियति = अपनी रीति या स्वभावानुसार गति करता है / पु? = स्पृष्ट होकर, स्पर्श पाकर / ' प्रोदन, कुल्माष और सुरा को पूर्वावस्था और पश्चादवस्था के शरीर का प्ररूपण 14. मह भंते ! प्रोदणे कुम्मासे सुरा एते णं किसरीरा ति क्त्तन्वं सिया? गोयमा ! प्रोदणे कुम्मासे सुराए य जे घणे दवे एए णं पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च वणस्सतिजीवसरीरा, तो पच्छा सस्थातीता सत्थपरिणामिता अगणिज्झामिता अगणिभूसिता अगणिपरिणामिता अणिजीवसरीराइ बत्तव्यं सिया। सुराए य जे दवे दध्वे एए णं पुस्वभावपण्णवणं पडुच्च आउजीवसरोरा, ततो पच्छा सत्यातीता जाव प्रगणिसरोरा ति वत्तन्वं सिया / [14 प्र.] भगवन् ! अब यह बताएं कि ओदन (चावल), कुल्माष (उड़द) और सुरा (मदिरा), इन तीनों द्रव्यों को किन जीवों का शरीर कहना चाहिए ? [14 उ.] गौतम ! प्रोदन, कुल्माष और सुरा में जो घन (ठोस या कठिन) द्रव्य हैं, वे पूर्वभाव-प्रज्ञापना की अपेक्षा से वनस्पतिजीव के शरीर हैं / उसके पश्चात् जब वे (प्रोदनादि द्रव्य) शस्त्रातीत (ऊखल, मूसल अादि शस्त्रों से कूटे जा कर पूर्वपर्याय से अतिक्रान्त) हो जाते हैं, शस्त्रपरिणत (शस्त्र लगने से नये रूप में परिवर्तित) हो (बदल) जाते हैं; अग्निध्यामित (आग से जलाये गए एवं काले वर्ण के बने हुए), अग्निझूषित (अग्नि से सेवित-तप्त हो जाने से पूर्वस्वभाव से रहित बने हुए) अग्निसेवित और अग्निपरिणामित (अग्नि में जल जाने से नये आकार में परिवर्तित) हो जाते हैं, तब वे द्रव्य अग्नि के शरीर कहलाते हैं। तथा सुरा (मदिरा) में जो तरल पदार्थ है, वह पूर्वभाव प्रज्ञापना को अपेक्षा से अकायिक जोवों का शरीर है, और जब वह तरल पदार्थ (पूर्वोक्त प्रकार से) शस्त्रातीत यावत् अग्निपरिणामित हो जाता है, तब वह भाग, अग्निकाय—शरीर कहा जा सकता है। विवेचन-चावल, उड़द और मदिरा को पूर्वावस्था और पश्चादवस्था के शरीर का प्ररूपणप्रस्तुत सूत्र में चावल, उड़द, और मदिरा इन तीनों को किस किस जीव का शरीर कहा जाए ? यह प्रश्न उठा कर इनकी पूर्वावस्था और पश्चादवस्था का विश्लेषण करके शास्त्रीय समाधान किया गया है। पूर्वावस्था को अपेक्षा से-चावल, उड़द, और मद्य, इन तीनों में जो घन-ठोस या कठिन द्रव्य हैं, वे भूतपूर्व वनस्पतिकाय के शरीर हैं / मद्य में जो तरल पदार्थ है, वह भूतपूर्व अप्काय के शरीर पश्चादवस्था की अपेक्षा से--किन्तु इन सब के शस्त्र-परिणत, अग्निसेवित, अग्निपरिणामित 1. भगवती अ. वृत्ति, पत्रांक 212 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy