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________________ 420 ] [ व्याख्याप्राप्तिसूत्र हवाएँ बहती हैं, तब सामुद्रिक ईषत्पुरोवात प्रादि हवाएँ नहीं बहती, और जब सामुद्रिक ईषत्पुरोवात आदि हवाएँ बहती हैं, तब द्वीपीय ईषत्पुरोवात आदि हवाएँ नहीं बहती ? [1-2 उ.] गौतम ! ये सब वायु (हवाएँ) परस्पर व्यत्यासरूप से (एक दूसरे के विपरीत, पृथक्-पृथक् तथा एक दूसरे से साथ नहीं) बहती हैं / (जब द्वीप की ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती हैं, तब समुद्र की नहीं बहती, और जब समुद्र की ईषतपुरोवात प्रादि वायु बहती हैं, तब द्वीप की ये सब वायु नहीं बहतीं। इस प्रकार ये सब हवाएँ एक दूसरे के विपरीत बहती हैं। साथ ही, वे वायु लवणसमुद्र की वेला का उल्लंघन नहीं करतीं। इस कारण यावत् वे वायु पूर्वोक्त रूप से बहती हैं / 10. [1] अस्थि णं भंते ! ईसि पुरेवाता पत्था वाता मंदा वाता महाबाता वायंति ? हंता, प्रथि। (10.1 प्र.] भगवन् ! (यह बताइए कि) क्या ईषत्पुरोवात, पथ्यवात, मन्दवात और महावात बहती (चलती) हैं। [10-1 उ.] हाँ, गौतम ! (ये सब) बहती हैं। [2] कया णं भंते ! ईसि जाब वायंति ? गोयमा ! जया णं वाउयाए अहारियं रियति तदा णं ईसि जाव वायति / [10.2 प्र.] भगवन् ! ईषत्पुरोवात आदि वायु कब बहती हैं ? [10-2 उ.] गौतम ! जब वायुकाय अपने स्वभावपूर्वक गति करता है, तब ईषत्पुरोवात आदि वायु यावत् बहती हैं। 11. [1] अत्यि णं भंते ! ईसि ? हंता, अस्थि / [11-1 प्र.] भगवान् ! क्या ईषत्पुरोवात आदि वायु हैं ? [11-1 उ.] हाँ, गौतम ! हैं। [2] फया गं भंते ! ईसि ? गोतमा ! जया णं वाउयाए उत्तरकिरियं रियइ तया णं ईसि / [11-2 प्र.] भगवान् ईषत्पुरोवात श्रादि वायु (और भी) कभी चलती (बहती) हैं ? [11-2 उ.] हे गौतम ! जब वायुकाय उत्तरक्रियापूर्वक (वैक्रिय शरीर बना कर) गति करता है, तब (भी) ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती (चलती) हैं / 12. [1] अस्थि णं भंते ! ईसि ? हंता, अस्थि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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