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________________ 416] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पुक्खरद्ध मंदराणं पुरथिम-पच्चस्थिमेणं नेवस्थि प्रोसप्पिणी नेवत्थि उस्सपिणी, अद्विते गं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो! सेवं भंते ! सेवं भंते! ति / // पंचमसतस्स पढमनो उद्देसनो। [27 प्र.] भगवन् ! आभ्यन्तरपुष्करार्द्ध में सूर्य, ईशानकोण में उदय होकर अग्निकोण में अस्त होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ? 27 उ.] जिस प्रकार धातकोखण्ड की वक्तव्यता कही गई, उसी प्रकार ग्राभ्यन्तरपुष्करार्द्ध की वक्तव्यता कहनी चाहिए / विशेष यह है कि धातकीखण्ड के स्थान में प्राभ्यन्तरपुष्करार्द्ध का नाम कहना चाहिए; यावत्---प्राभ्यन्तरपुष्करार्द्ध में मन्दरपर्वतों के पूर्व-पश्चिम में न तो अवपिगी है, और न ही उत्सर्पिणी है, किन्तु हे प्रायुष्मन् श्रमण ! वहाँ सदैव अवस्थित (अपरिवर्तनीय) काल कहा गया है। "हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! , भगवन् ! यह इसी प्रकार हैं' यों कहकर यावत् गौतम स्वामी विचरण करने लगे। विवेचन-लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोदधि तथा पुकरार्द्ध में सूर्य के उदय-प्रस्त एवं दिवस-रात्रि का विचार–प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. 22 से 27 तक) में लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोदधि एवं पुष्करार्द्ध को लेकर विभिन्न दिशाओं की अपेक्षा सूर्योदय तथा दिन-रात्रि-प्रागमन का विचार किया गया है / जम्ब्रद्वीप, लवणसमुद्र आदि का परिचय-जैन भौगोलिक दृष्टि से जम्बूद्वीप 1 लाख योजन का विस्तृत गोलाकार है / जम्बूद्वीप में दो सूर्य और दो चन्द्र हैं। ये मनुष्यलोक में मेरुपर्वत की प्रदक्षिणा करते हुए नित्यगति करते हैं, इन्हीं से काल का विभाग होता है / जम्बूद्वीप को चारों ओर से घेरे हुए लवणसमुद्र है, जिसका पानी खारा है। यह दो लाख योजन विस्तृत है / जम्बूद्वीप और लवणसमुद्र दोनों वलयाकार (गोल) हैं। लवणसमुद्र के चारों ओर धातकोखण्ड द्वीप है। यह चार लाख योजन का वलयाकार है। इसमें 12 सूर्य एवं 12 चन्द्रमा हैं। धातकीखण्ड के चारों ओर कालोद (कालोदधि) समुद्र है, यह 8 लाख योजन का वलयाकार है। कालोद समुद्र के चारों ओर 16 लाख योजन का बलयाकार पुष्करवरद्वीप है। उसके बीच में मानुषोत्तरपर्वत आ गया है, जो अढ़ाई द्वीप और दो समुद्र के चारों ओर गढ़ (दुर्ग) के समान है तथा चूड़ी के समान गोल है। यह पर्वत बीच में श्रा जाने से पुष्करवर द्वीप के दो विभाग हो गये हैं-(१) प्राभ्यन्तर पुष्करवरद्वीप और (2) बाह्य पुष्करवरद्वीप / आभ्यन्तर पुष्करवर द्वीप में 72 सूर्य और 72 चन्द्र हैं / यह पर्वत मनुष्यक्षेत्र की सीमा निर्धारित करता है, इसलिए इसे मानुषोत्तरपर्वत कहते हैं। मानुषोत्तरपर्वत के आगे भी असंख्यात द्वीप-समुद्र हैं, किन्तु उनमें मनुष्य नहीं हैं / निष्कर्ष यह है कि मनुष्यक्षेत्र में जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड द्वीप और अर्द्धपुष्करवर द्वीप; ये ढाई द्वीप और लवणसमुद्र तथा कालोद-समुद्र ये दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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