________________ पंचम शतक : उद्देशक-१] . [415 [प्र.] भगवन् ! जब धातकीखण्ड के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी दिन होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में दिन होता है, तब क्या धातकीखण्ड द्वीप के मन्दरपर्वतों से पूर्व पश्चिम में रात्रि होती है ? [उ.] हाँ, गौतम ! यह इसी तरह (होता है / ) यावत् रात्रि होती है। 24. जदा णं भंते ! धायइ संडे दीवे मंदराणं पव्वताणं पुरथिमेणं दिवसे भवति तदा गं पच्चत्थिमेण वि? जदा गं पच्चत्थिमेण वि तवा गं धायइसंडे दीवे मंदराणं पव्वयाणं उत्तरदाहिणणं राती भवति ? हंता, गोयमा ! जाव भवति / एवं एतेणं अभिलावेणं नेयन्वं जाव० / [24 प्र.] भगवन् ! जब धातकीखण्डद्वीप के मन्दरपर्वतों से पूर्व में दिन होता है, तब क्या पश्चिम में भी दिन होता है ? और जब पश्चिम में दिन होता है, तब क्या धातकोखण्डद्वीप के मन्दरपर्वतों से उत्तर-दक्षिण में रात्रि होती है ? [24 उ.] हाँ, गौतम ! (यह इसी तरह होता है,) यावत् (रात्रि) होती है और इसी अभिलाप से जानना चाहिए, यावत् 25. जदा णं भंते ! दाहिणड्ढे पढमा प्रोसप्पिणी तदा णं उत्तरड्ढे, जदा णं उत्तरड्ढे तया णं धायइसंडे दीवे मंदराणं पव्वयाणं पुरथिम-पच्चत्यिमेणं णेवत्थि प्रोसप्पिणी जाव समणाउसो ! ? हंता, गोयमा ! जाव समणाउसो ! [25 प्र.] भगवन् ! जब दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी होती है ? और जब उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसपिगी होती है, तब क्या धातकीखण्ड द्वीप के मन्दरपर्वतों से पूर्व पश्चिम में भी अवसर्पिणी नहीं होती? यावत् उपिणी नहीं होती ? परन्तु प्रायुष्मान् श्रमणवर्य ! क्या वहाँ अवस्थितकाल होता है ? _[25 उ.] हाँ, गौतम ! (यह इसी तरह होता है,) यावत् हे आयुष्मान् श्रमणवर्य ! अवस्थित काल होता है। 26. जहा लवणसमुहस्स वत्तव्यता तहा कालोदस्स वि भाणितम्या, नवरं कालोदस्स नामं माणितव्वं / [26] जैसे लवणसमुद्र के विषय में वक्तव्यता कही, वैसे कालोद (कालोदधि) के सम्बन्ध में भी कह देनी चाहिए। विशेष इतना ही है कि वहाँ लवणसमुद्र के स्थान पर कालोदधि का नाम कहना चाहिए। 27. अभितरपुक्खरद्ध णं भंते ! सूरिया उदीचि-पाईणमुग्गच्छ जहेव धायइसंडस्स वत्तव्यता तहेव अमितरपुक्खरद्धस्स वि भाणितव्वा। नवरं अभिलावो जाणेयन्वो जाव तदा णं अमितर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org