________________ 414] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वत्तव्वता भणिता सच्चेव सव्वा अपरिसेसिता लवणसमुदस्स वि भाणितम्वा, नवरं अभिलावो इमो जाणितब्बो-जता णं भंते ! लवणे समुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवति तदा गं लवणे समुद्दे पुरथिमपत्रचस्थिमेणं राती भवति?' एतेणं अभिलावेणं नेतन्वं [22-1 प्र.] भगवन् ! लवणसमुद्र में सूर्य ईशान कोण में उदय हो कर क्या अग्निकोण में जाते हैं ?; इत्यादि सारा प्रश्न पूछना चाहिए / [22-1 उ.] गौतम ! जम्बूद्वीप में सूर्यों के सम्बन्ध में जो वक्तव्यता कही गई है, वह सम्पूर्ण वक्तव्यता यहाँ लवणसमुद्रगत सूर्यों के सम्बन्ध में भी कहनी चाहिए। विशेष बात यह है कि इस वक्तव्यता में पाठ का उच्चारण इस प्रकार करना चाहिए-'भगवन् ! जब लवगसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है,' इत्यादि सारा कथन उसी प्रकार कहना चाहिए, यावत् तब लवणसमुद्र के पूर्व पश्चिम में रात्रि होती है।' इसी अभिलाप द्वारा सब वर्णन जान लेना चाहिए। [2] जदा पं भंते ! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा अोसप्पिणी पडिवज्जति तदा णं उत्तरडढे वि पढमा प्रोसपिणो पडिवज्जइ ? जदा णं उत्तरड्ढे पढमा प्रोसप्पिणी पडिवज्जइ तदा णं लवणसमुद्दे पुरस्थिम-पच्चस्थिमेणं नेवस्थि प्रोसप्पिणी, वथि उस्लप्पिणी समणाउसो ! ? हंता, गोयमा ! जाब समणाउसो ! [22-2 प्र.] भगवन् ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी (काल) होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी (काल) होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी (काल) होता है, तब क्या लवणसमुद्र के पूर्व-पश्चिम में अवसर्पिणी नहीं होती ? उत्सपिणी नहीं होती ? किन्तु हे दीर्घजीवी श्रमणपुगव ! क्या वहां अवस्थित (अपरिवर्तनीय) काल होता है ? [22-2 उ.] हाँ, गौतम ! (यह इसी तरह होता है / ) और वहां...""यावत् प्रायुष्मान् श्रमणवर ! अवस्थित काल कहा गया है / 23. धायतिसंडे णं भंते ! दीवे सूरिया उदीचि-पादोणमुगच्छ.....? जहेब जंबुद्दीवस्स वत्तवता भणिता स च्चेव घायइसंडस्स वि भाणितव्वा, नवरं इमेणं अभिलावणं सन्ने पालावगा भाणितव्वा-जता जे भंते ! धातिसंडे दोवे दाहिणड्ढे दिवसे भवति तदा णं उत्तरड्ढे वि ? जदा णं उत्तरड्ढे वि तदा गं धायइसंडे दीये मंदराणं पम्वताणं पुरस्थिम-पच्चत्यिमेणं राती भवति ? हंता, गोयमा! एवं जाव रातो भवति / [23 प्र.] भगवन् ! धातकोखण्ड द्वीप में सूर्य, ईशानकोण में उदय हो कर क्या अग्निकोण में अस्त होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / 23 उ.] हे गौतम ! जिस प्रकार की वक्तव्यता जम्बूद्वीप के सम्बन्ध में कही गई है, उसी प्रकार की सारी वक्तव्यता धातकीखण्ड के विषय में भी कहनी चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि इस पाठ का उच्चारण करते समय सभी आलापक इस प्रकार हए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org