________________ 410] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ ? जया णं उत्तरढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थितपच्चस्थिमेणं प्रणतरपुरक्खडसमयंसि वासाणं पढमे समए पडिवज्जति ? हंत, गोयना! जदा णं जंबु० 2 दाहिणड्ढे वासाणं प० स० पडिवज्जति तह चेव जाव पडिवज्जति / [14 प्र.] 'भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में वर्षा (ऋतु) (चौमासे की मौसम) का प्रथम समय होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में वर्षा-ऋतु का प्रथम समय होता है, तब जम्बूद्वीप में मन्दर-पर्वत से पूर्व पश्चिम में वर्षाऋतु का प्रथम समय अनन्तर-पुरस्कृत समय में होता है ? (अर्थात्-जिस समय दक्षिणार्द्ध में वर्षा ऋतु का प्रारम्भ होता है, उसी समय के तुरंत पश्चात् दुसरे समय में मन्दरपर्वत से पूर्व-पश्चिम में वर्षाऋतु प्रारम्भ होती है ?) [14 उ.] 'हाँ, गोतम ! (यह इसी तरह होता है / अर्थात्-) जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है. तब उसी तरह यावत्""होता है / ' 15. जाणं भंते ! जंब० मंदरस्स० पुरथिमेणं वासाणं पढमे समए पडिवज्जति तयाणं पच्चस्थिमेण वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ ? जया णं पच्चत्यिमेणं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ तया णं जाव मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणणं अणंतरपच्छाकडसमयसि वासाणं 50 स० पडिबन्ने भवति ? हता, गोयमा! जदा णं जंबु० मंदरस्स प.वयस्स पुरस्थिमेणं एवं चेव उच्चारेयव्वं जाव पडिबन्ने भवति / [15 प्र.] भगवन् ! जब जम्बूद्वीप में मन्दराचल से पूर्व में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब पश्चिम में भी क्या वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है ? और जब पश्चिम में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब, यावत्""मन्दरपर्वत से उत्तर दक्षिण में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय अनन्तर-पश्चात्कृत् समय में होता है ? (अर्थात्- मन्दरपर्वत से पश्चिम में वर्षा ऋतु प्रारम्भ होने के प्रथम समय पहले एक समय में वहाँ (मन्दरपर्वत के) उत्तर-दक्षिण में वर्षा प्रारम्भ हो जाती है ?) [15 उ.] हाँ, गौतम ! (इसी तरह होता है। अर्थात्--) जब जम्बूद्वीप में मन्दराचल से पूर्व में वर्षाऋतु प्रारम्भ होती है, तब पश्चिम में भी इसी प्रकार यावत्-उत्तर दक्षिण में वर्षाऋतु का प्रथम समय अनन्तर-पश्चात्कृत समय में होता है, इसी तरह सारा वक्तव्य कहना चाहिए / 16. एवं जहा समएणं अभिलावो भणियो वासाणं तहा प्रावलियाए ' वि भाणियन्यो 2, 1. पावलिका सम्बन्धी पाठ इस प्रकार कहना चाहिए-'जया णं भंते ! जंबुददीवे दीवे दाहिणडढे वासाणं पढमा आवलिया पडिवज्जइ तयाणं. उत्तरडढे वि, जयाणं उत्तरड्ढे बासाणं पढमा आलिया पडिवज्जइ, तया णं जंबद्दीवे दीवे मंदरस्स पध्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं अणंतरपुरक्खडसमयंसि वासाणं पढमा आवलिया पडिवज्जइ ?' हंता गोयमा! इत्यादि। इसी प्रकार प्रानपान प्रादि पदों का भी सूत्र पाठ समझ लेना चाहिए। —सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org